पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२

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श्री ग्रियर्सन जी,

अपने विदेशी होते हुए भी हिन्दी-साहित्य का प्रथम इतिहास लिखा।
हम हिन्दी भाषा-भाषी इसके लिए आपके कृतज्ञ हैं, यह इसीसे स्पष्ट
है कि आपने जो कुछ लिखा, हमने उसे प्रायः उसी रूप में स्वीकार
कर लिया और अपके 'द माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर आफ
हिन्दुस्तान' ने बाद में लिखे जानेवाले हिन्दी साहित्य के
इतिहासों के रूपरंग को सँवारा। आपके अँगरेजों के
लिए अँगरेजी में लिखे हिन्दी साहित्य के प्रथम
इतिहास का हिन्दीवालों के लिए यह हिन्दी
अनुवाद मैं सटिप्प्ण प्रस्तुत कर रहा हूँ।
अनुवाद तो आपका ही है, उसे क्या
समर्पित करूँ?––हाँ, टिप्पणियाँ
मेरी हैं, उन्हें स्वीकार करें।

––किशोरीलाल गुप्त