पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२०

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( १ ) नरैनिया और भागवत

( २ ) अद्भुत रामायण

( ३ ) एक पुराना कुमायूँनी व्यंग ( Satire )

( ४ ) भक्तमाल की झाँकी

( ५ ) आल्हा विवाह के गीत

इनके अतिरिक्त ग्रियर्सन ने बिहार के किसानों पर एक ग्रंथ 'पीज़ैट लाइफ़ इन बिहार' नाम से प्रस्तुत किया था।

'द मोडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर आफ़ हिन्दुस्तान'

परिचय

सर जार्ज ए० ग्रियर्सन रचित 'द माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर आफ़ हिन्दुस्तान' हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास है। आश्चर्य है कि हमारे साहित्य के इतिहास का प्रणयन एक विदेशी विद्वान ने, एक विदेशी भाषा में और वह भी विदेशियों के ही उपयोग के लिये किया। १८८६ ई० में ग्रियर्सन ने प्राच्य विद्या विशारदों की अन्तर्राष्ट्रीय सभा के वियना अधिवेशन में, हिन्दुस्तान ( हिन्दी-भाषा-भाषी-प्रदेश ) के मध्यकालीन भाषा-साहित्य और तुलसी पर एक लेख पढ़ा था। इसकी तैयारी के लिये इन्होंने कई वर्षों में समस्त हिन्दी-साहित्य पर टिप्पणियाँ प्रस्तुत की थीं, जिनके एक अंश का ही उपयोग उक्त लेख में हो सका था। यह लेख विशेष ध्यानपूर्वक सुना गया था। अतः लेखक को जो प्रोत्साहन मिला, उससे प्रेरित होकर उसने अपनी सारी टिप्पणियों को सुव्यवस्थित कर यह ग्रन्थ प्रस्तुत किया, जो सर्वप्रथम १८८८ ई० के 'रायल एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल' के जर्नल प्रथम भाग में प्रकाशित हुआ। तदुपरान्त १८८९ ई० में उसी सोसाइटी की ओर से स्वतन्त्र ग्रंथ के रूप में प्रकाशित हुआ। इस ग्रन्थ का पुनर्मुद्रण नहीं हुआ और अब यह दुष्प्राप्य हो गया है। पुस्तकालयों में यत्र-तत्र इसकी प्रतियाँ हैं, जो पढ़ने के लिये भी नहीं दी जातीं।

'प्रस्तावना में लेखक ने अत्यन्त विनम्रता पूर्वक स्वीकार किया हैं कि उसका ग्रंथ "भाषा साहित्य के उन समस्त लेखकों की सूची मात्र से अधिक और कुछ नहीं है, जिनका नाम मैं एकत्र कर सका हूँ और जो संख्या में ९५२ हैं।" इस ग्रन्थ में मारवाड़ी, हिन्दी और बिहारी के लिखित साहित्य का उल्लेख हुआ है। ग्राम साहित्य की चर्चा नहीं हुई है। अधिकांश लेखकों का केवल नाम दिया गया है, कोई विवरण नहीं। प्रत्येक लेखक की रचना के नमूने