पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२१६

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( १९७ ) शिवनारायणी संप्रदाय के प्रवर्तक । यह मुहम्मदशाह के शासनकाल ( १७१९-१७४८ ई०) में उपस्थित थे। अपने सिद्धांतों के प्रतिपादनार्थ इन्होंने प्रचुर परिमाण में रचना की है । हिंदी पद्य की ११ पुस्तकें इनकी कही जाती है। ये हैं--(१) लव ग्रंथ, (२) संत विलास, (३) मजन ग्रंथ, (४) सांत सुंदर, (५) गुरुन्यास, (६) सांताचारी, (७) सांतोपदेस, (८) सबदावली, (९) सांत परवान, (१०) सांत महिमा, (११) सांत सागर । एक बारहवीं पुस्तक अमी और है जो संप्रदाय के प्रमुख के एकांत अधिकार में पड़ी हुई है और अभी तक निकल नहीं सकी है। देखिए, विलसन रेलिजस सेक्टस आफ़ द हिंदून, भाग १, पृष्ठ ३५९; गासी द तासी द्वारा उद्धृत भाग १, पृष्ठ ४७५ । ३२२. लाल जी-काँधला, जिला सुजफ्फर नगर के कायस्थ । १७५१ ई० में उपस्थित । इस साल इन्होंने भक्तमाल (सं० ५१) की 'भक्त उरबसी' नामक टीका लिखी। ३२३. जगजीवनदास--कोटवा जिला बाराबंकी के चंदेल । १७६१ ई० में उपस्थित। यह सतनामी संप्रदाय के प्रवर्तक थे और भाषा में कविताएँ भी लिखते थे। इनके उत्तराधिकारियों और शिष्यों में जलालीदास, दूलमदास और देवीदास (सं० ४८७) का नाम लिया जा सकता है। ये सभी कविथे । यह और ये शातरस की कविता में बढ़े चढ़े थे। इनके ग्रंथों में ज्ञान प्रकाश, महा परलै और प्रथम ग्रंथ का उल्लेख किया जा सकता है। देखिए, विलसन, रेलिजस सेक्ट्स आफ़ द हिंदज, पृष्ठ ३५७; गार्सा द तासी, भाग १, पृष्ठ २५६ ।। टि०--जगजीवनदास का जन्मकाल सं० १७२७ माघ सुदी ७ और मृत्युकाळ सं० १८१० वैशाख बदी ७ है। ज्ञान प्रकाश और महा प्रकय का रचनाकार सं० १८१३ है। जिसे ग्रियर्सन ने प्रथम ग्रन्थ समझा है, वह 'परम अंग है। इसका रचना काल १८१२ है। --सर्वेक्षण ३०४ ३२४. दुल्हा राम-१७७६ ई० में उपस्थित। यह १७७६ ई० में राम सनेही हुए और १८२४ ई० में दिवंगत हुए। यह संप्रदाय के तीसरे आध्यात्मिक गुरु थे। इन्होंने प्रायः १०,००० सबद और ४,००० साखियों छोड़ी हैं । देखिए, गासै द तासी, भाग १, पृष्ठ १६१ ।