पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२१७

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( १९८) भाग २, अन्य कवि [यथा संभव संबंधित आश्रयदाता और राज्य के क्रम से ] ३२५. जै सिद्ध सवाई-आमेर के कछवाहा राजा। शासनकाल १६९९- १७४३ ई०। यह कवियों के आश्रयदाता ही नहीं थे, बल्कि इन्होंने 'जैसिंह कल्पद्रुम' नाम से अपना जीवन चरित भी लिखा है, जो महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थ है। यह अपने युग के असाधारण लोगों में से थे। देखिए, टाड का राजस्थान, भाग २, पृष्ठ ३५६-६८; कलकत्ता संस्करण भाग २, पृष्ठ ३९३-४०७ । ३२६. सूरति मिसर-आगरा के । १७२० ई० में उपस्थित । सूदन । विहारीलाल (सं० १९६ ) की सतसई की एक प्रख्यात टीका, सरस रत ( राग कल्पद्रुम), नखशिख, रसिक प्रिया की टीका ( देखिए संख्या १३४ ) और अलंकार माला नामक अलंकार ग्रन्थ के रचयिता । मुहम्मदशाह के शासनकाल ( १७१९-१७४८ ई.) में बैताल पचीसी (राग कल्पद्रम) का ब्रजभाषा में, जैसिंह सवाई (सं० ३२५, १६९९-१७४३ ई०) की आज्ञा से, अनुवाद किया। यह ब्रजभाषानुवाद ही बैताल पचीसी के लल्लू जी लाल ( देखिए, सं०६२९) वाले सुप्रसिद्ध हिन्दुस्तानी रूपान्तर का मूलाधार है। देखिए गासी द तासी, भाग १, पृष्ठ ३०६-४८४ और अन्तिम कथित ग्रन्थ की। भूमिका भी। पुनश्च अलंकार माला की तिथि सं०१७६६ (१७०८ ई०) दी गई है। टि-सूरति मिश्र का रचनाकाम सं० १७६६-१८०० है। -सर्वेक्षण ९३१ ३२७. किशन कवि-जैपुर के । १७२० ई० में उपस्थित । यह कवि बिहारी लाल ( सं० १९६ ) के शिष्य थे। राजा जैमिह सवाई (सं० ३२५) की नौकरी में थे। इन्होंने बिहारी की सतसई पर टीका लिखी थी। देखिए संख्या १८० । टिo-बिहारी सतसई पर क्षवित्त-बंध टीका रचने वाले.जयपुरी कृष्ण कनि विहाही के शिष्य नहीं थे। इन्होंने यह टीका सं० १७८२ में पूर्ण की, जब कि बिहारी की मृत्यु सं० १७२१ में ही हो गई थी। -सर्वेक्षण : ३२८. क्रिपाराम कवि-जयपुर के । १७२० ई० में उपस्थित । ___ यह राजा जयसिंह सवाई (सं० ३२५ ) के ज्योतिषियों में से थे। इन्होंने ज्योतिष सम्बन्धी एक ग्रन्थ 'समय बोध' (१ समय ओघ ) भाषा में लिखा। . टि.--ग्रंथ का नाम 'समय बोध' हो है। इसकी रचना सं०.१७७२ में हुई थी। ---सर्वेक्षण ११२