पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२१९

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( २०० ) १९१३) अपनी छाप छितिपाल रखते थे। भागवत के अनुवादक भूपत्ति कायस्थ भी निश्चय ही इनसे भिन्न है। -सर्वेक्षण ६२१,२४२ ३३३. भगवंत राय खीची असोथर जिला फतहपुर के । १७५० ई० में उपस्थित। ? सुन्दरी तिलक | यह असोथर कुटुम्ब के संस्थापक अरारू के पुत्र थे। इन्होंने कई वर्षों तक अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा की और सफलतापूर्वक सम्राट की सेना का सामना किया, किन्तु अंत में १७६० ई० में यह धोखे से मारे गए और इनका पुत्र रूपराम गद्दी पर बैठा। देखिए ग्राउस, सप्लीमेंट टू फतेहपुर गजेटियर, पृष्ठ ५, ८, जहाँ १७६० के स्थान पर १८६० अशुद्ध छपा है । यह एक 'रामायण' के लेखक और कामता प्रसाद (सं० ६४४) के पूर्वज थे । सम्भवतः यह शिवसिंह द्वारा उल्लिखित भगवन्त कवि और भगवान कवि भी हैं ! भगवन्त कवि के रूप में सुन्दरी तिलक में उद्धत ।। टिक-भगवन्त राय खींची और भगवन्त कधि ( सरोज सर्वेक्षण ६००) एक ही कवि हैं। अगवन्त कवि (सरोज सर्वेक्षण ६०१) इनसे भिन्न है।। ३३४. उदयनाथ त्रिवेदी कवींद्र-बनपुरा दोआब के रहने वाले । १७२० ई० के आसपास उपस्थित । सत्कविगिराविलास ।, यह हजारा के रचयिता कालिदास त्रिवेदी (सं० १५९) के पुत्र थे और उतने ही प्रसिद्ध कवि थे, जितने इनके पिता । पहले यह अमेठी के राजा हिम्मत सिंह के यहाँ रहते थे और कविता में उदैनाय ही छाप रखते थे। कुछ दिनों के अनन्तर राजा ने इन्हें कवीन्द्र की उपाधि दी, तब यह यही छाप रखने लगे। यह उपाधि इन्हें रस चन्द्रोदय या रति विनोद या चन्द्रोदय या रसचन्द्रिका लिखने पर मिली थी। यह भाषा साहित्य का ग्रंथ है और संवत् १८०४ (१७४७ ई०) में लिखा गया था । तदनन्तर यह थोड़ी-थोड़ी देर अमेठी के गुरुदत्त सिंह (सं० ३३२), असोथर के भगवन्तराय खींची (सं० ३३३) ( मृत्यु १७६० ई.) अजमेर के राजा गजसिंह, और बूंदी के राजा बुद्धराव हाड़ा (१७१०-१७४० ई०) (सं० ३३०) के यहाँ ठहरे। इन सभी के द्वारा यह भली-भाँति सम्मानित हुए। यहाँ, यह कहा जा सकता है कि एक और भी कवींद्र, बेती जिला रायबरेली के ये । वह भी प्रसिद्धि प्राप्त कवि थे। २. मुझे टाट में इस राजा का उल्लेख कहीं भी नहीं मिला ।