पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२२१

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( २०२ ) ३४०. जगत सिङ्घ-बिसेन । १७७० ई० के आसपास उपस्थित । यह गोंड़ा और भिनगा के राजवंश के थे। यह देउतहाँ के ताल्लुकेदार थे। इसी गाँव में शिव अरसेला वंदीजन रहते थे। कान्यकला में यह उनके शिष्य हो गए और 'छंद शृंगार' नामक पिंगल ग्रंथ लिखा। इन्होंने 'साहित्य- सुधानिधि' नामक अलंकार ग्रंथ भी लिखा । देखिए सं०६०५। . . . टि.---'साहित्य सुधानिधि की रचना सं० १८५८ वि० में हुई। --सौक्षण २५५ ३४१. स्यामलाल कवि-जहानाबाद के । १७५० ई० के आसपास उपस्थित । . सूदन । (?) यह असोथर, फतहपुर के भगवंतराय खींची (सं० ३३३) ( मृत्यु १७६० ई०) के दरबार में थे। ३४२. निवाज-बुंदेलखंडी ब्राह्मण । १७५० के आसपास उपस्थित । यह असोथर, फतहपुर के भगवंतराय खींची ( मृत्यु १७६० ई०) के यहाँ थे। संभवतः बही जो सं० ४४८ वाले। टि.---३४२, ४४८ संख्यक दोनों निवाज मिन्न भिन्न हैं। प्रथम ब्राह्मण हैं, दूसरे मुसलमान । ३४३. सारंग कवि-असोथर, जिला फतहपुर के। १७५० ई० के आसपास उपस्थित । ___ यह असोथर, फतहपुर के भगवंतराय खींची (सं० ३३३ ) ( मृत्यु १७६० . ई.) के मतीजे भवानीसिंह खींची के दरबार में थे। ३४४. भिखारीदास-अरवल, बुंदेलखंड के कायस्थ । जन्म १७२३ ई० ।। ___ यह भाषा साहित्य के आचार्यों में गिने जाते हैं । इनके ग्रंथों में (१) छंदार्णव-पिंगल ग्रंथ, (२) रस सारांश, (३) काव्य निर्णय, (४) शृंगार- निधि, (५) बाग बहार, (६) प्रेम रत्नाकर का उल्लेख किया जा सकता है। . संख्या ३ [ काव्य निर्णय ] में कुछ कवियों का नाम आया है। यह मूल ग्रंथ . में "Nir' से संकेतित है। पुनश्चः- प्रेम रत्नाकर की तिथि सं० १७४२ (१६८५ ई०) दी गई है और छंदार्णव की सं० १७९९ ( १७४२ ई०)। पहले ग्रंथ में यह राजा रतनेश की प्रशंसा करते हैं। देखिए सं०.५१९, और संख्या १४९ का 'पुनश्च' । टिo-महेशदत्त के अनुसार भिखारीदास का जन्सकाल सं० १७४५ और मृत्युकाल सं० १८२५ है। शुक्ल जी के अनुसार इनका रचनाकाल सं० १७८०- १८०७ है। अतः १७२३ ई० (सं० १७८०) इनका रचनाकाल है । बाग