पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२२२

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बहार नाम का कोई अंथ इन्होंने नहीं लिखा। प्रेम रत्नाकर देवीदास बुंदेलखंडी (सर्वेक्षण ३२३) का ग्रन्थ है। देवीदास ने इसे सं० १७४२ में स्तनपाल, करौली नरेश, के लिए लिखा था। सरोज में प्रसाद से उदाहरण देते समय यह ग्रन्थ दास का हो गया है। यह प्रेस के भूतों की कृपा है। पंक्तियाँ ऊपर नीचे जो एक बार हुई, तो सक्षम संस्करण तक बराबर रह गई, यद्यपि इसका संशोधन भी किया गया। यह बुंदेलखंडी नहीं, प्रतापगढ़ी थे और प्रतापगढ़ के राजा के अनुज हिंदूपति के यहाँ थे। सरोजकार ने हिंदूपति को प्रसिद्ध छत्रलाल का पौत्र पन्नानरेश हिंदूपति समझ लिया और तदनुकूल इन्हें बुंदेलखंडी बना दिया है। -~~-सर्वेक्षण ३४३ ३४५. गिरिधर कविराय-दोआब के । जन्म १७१३ ई० । राग कल्पद्रुम । यह कुंडलिया छंद में नीति और सामयिक काव्य के प्रसिद्ध रचयिता हैं । यह इस छंद के प्रयोक्ता सबसे बड़े कवि माने जाते हैं। देखिए, केलाग का हिंदी ग्रामर, प्रोसोडी, पृष्ठ २५ । संभवतः वही जो ४८३ संख्यक कवि । टि-सरोज में ( सर्वेक्षण १६३) इन्हें 'सं० १७७० में उ० कहा गया है । यह ४८३ संख्यक होलपुर वाले गिरिधर से निश्चय ही भिन्न हैं । ३४६. करन भट्ट-परना, बुंदेलखंड के भाट, जन्म १७३७ ई० ।। इन्होंने बिहारी (सं० १९६) की सतसई की एक टीका साहित्य चंद्रिका नाम से परना के बुंदेला राजा सभासिंह (सं० १५५) और हिरदैसाहि के आश्रय में रहकर लिखी। यह आशु कविता और समस्यापूर्ति में परम प्रवीण थे, जो इनकी प्रतिभा की परीक्षा के लिए दी जाती थी। फलतः इन्हें अनेक प्रकार के उपहार और सम्मान मिले थे। तिथि शिवसिंह से ली गई है; पर मुझे परना के किसी सभासिंह नामक राजा का कोई पता नहीं लगा। रिपोर्ट आफ़ द आर्केआलोजिकल सर्वे आफ इंडिया, भाग ३१ में पृष्ठ ११२ पर हिरदै साहि का उल्लेख मिलता है, जो अपने पिता छत्रसाल की मृत्यु के पश्चात् १७१८ ई० (१ संवत ) में सिंहासनासीन हुए । देखिए, सं० ५०४ । पुनश्च :-

· इनके साहित्य चंद्रिका की तिथि सं० १७९४ ( १७३७ ई०) दी गई

है, जिसको शिव सिंह इनके जन्मसंवत के रूप में देते हैं । हृदयसाहि के संबंध में संख्या ५०३ भी देखिए।

टिo---हृदयसाहि महाराज उन्नलाल के पुत्र थे। इन्होंने सं० १७८८ से

१७९६ तक राज्य किया। समासिंह, छत्रसाल के पौत्र और हृदय साहि के .