पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२२६

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( २०७ ) टि०-ग्रियर्सन के १६०, ३३५ और ३५६ संख्यक तीनों सुखदेव एक ही हैं। -सर्वेक्षण ८३४ ३५७. संभुनाथ कवि-कवि और बंदीजन । १७५० ई० में उपस्थित । ___ यह दौलतपुर वाले सुखदेव मिसर (सं० ३५६ ) के शिष्य और रामविलास नामक रामायण के रचयिता थे । देखिए सं० ३६६, पुनश्च :--- रामविलास की तिथि सं० १७९८ (१७४१ ई०) दी गई है। ३५८. दूलह त्रिवेदी बनपुरा, दोआब के । १७४६ ई० में उपस्थित । ___ सत्कवि गिराविलास । यह उदयनाथ त्रिवेदी (सं० ३३४ ) के पुत्र और प्रसिद्ध हजारा के संकलयिता कालिदास त्रिवेदी (सं० १५९) के पौत्र थे। इन्होंने कवि कुल कंठाभरण नामक भाषा साहित्य का बहुत प्रामाणिक ग्रंथ लिखा। ३५९, बलदेव कवि-बधेलखंडी । १७४६ ई० में उपस्थित । यह देवरा बाजार के राजा विक्रम साह बघेल के दरबार में थे। इस साल इन्होंने, इस राजा की इच्छा से, सत्कवि गिराविलास नामक काव्य संग्रह तैयार किया, ( जो मूल ग्रन्थ में sat से संकेतित है ), जिसमें १७ विभिन्न कवियों की रचनाएँ हैं :- १. केशवदास (सं० १३४) २. चिन्तामणि (सं० १४३) ३. मतिराम (सं० १४६ ) ४. शम्भुनाथ सुलकी (सं० १४७ ) ५. नीलकंठ (सं० १४८) . . ६. कालिदास त्रिवेदी (सं० १५९) ७. सुखदेव मिसर कंपिला के (सं० १६०) ८. बिहारी लाल (सं० १९६) ९, केशवराय (सं० ३००) १०. रविदत्त (सं० ३०४) ११. गुरुदत्तसिंह अमेठी के (सं० ३३२) १२. उदयनाथ त्रिवेदी (सं०.३३४) १३. शंभुनाथ मिसर (सं० ३३८) १. चरखारी के प्रसिद्ध विक्रमसाहि (सं० ५१४ ) से, जो १७४५ ई० में उत्पन्न हुए थे; इन्हे भिन्न होना चाहिए.1 विचित्र है कि इनके दरवार में भी एक बलदेव कवि थे। .