पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२२७

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( २०८) १४, दूलह (सं० ३५८) १५. हिम्मत बहादुर (सं० ३७७ ) १६. विश्वनाथ अताई (सं० ४२१) १७. मुकुंद लाल ( सं० ५६०) यह स्वयं भी कविता लिखते थे। ३६०. मनबोध झा-उपनाम भोलन झा, जयसम जिला दरभंगा के। १७५० . ई० में उपस्थित । मिथिला के बहुत प्रसिद्ध कवियों में से एक। इनके संबंध में निम्नलिखित तथ्य के अतिरिक्त बहुत कम ज्ञात है। इन्होंने किसी भिखारीदास की कन्या से विवाह किया था और इनके एक ही संतान, एक लड़की, हुई, जो वर्तमान दरभंगा महाराज की पूर्वजा थी। इन्होंने हरिवंश का मैथिली भाषा में अनुवाद किया था। इसके केवल १० अध्याय मिलते हैं, जो परम प्रसिद्ध है। देखिए जर्नल आफ एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल, १८८२, पृष्ठ १२९ और १८८४ विशेषांक । ३६१. केसव-१७७५ ई० में उपस्थित । यह मैथिल कवि थे, जो राजा परतापसिंह के दरबार में ये, जो स्वयं मोद नारायण उपनाम से ( सं० ३६२) कविता करते थे। ३६२. मोद नारायण-उपनाम राजा परतापसिंह । १७७५ ई० के आसपास उपस्थित । मिथिला के राजा, जो स्वयं भी कवि थे। यह दरभंगा के नरेंद्र सिंह के पुत्र थे, जिन्होंने कनरपीघाट जीता था ( देखिए लाल झा सं० ३६३ ) और वर्तमान महागज से पाँच पीढ़ी पहले थे। देखिए जर्नल आफ़ द एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल, भाग ५३, पृष्ठ ८२ | कवि केशव (सं० ३६१) इनके दरबारी थे। ३६३. लाल झा-मँगरौली, जिला दरभंगा के लाल झा था कवि लाल । १७८० ई० में उपस्थित। मिथिला के परम प्रसिद्ध कवियों में से एक । 'कनरपी घाट लड़ाई' नामक ग्रंथ के रचयिता । देखिए जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल, भाग ५४, पृष्ठ १६ । इनके आश्रयदाता नरेंद्र सिंह थे, जिन्होंने उक्त ग्रंथ के लिए इन्हें करनौल नामक गाँव पुरस्कार में दिया था। यह गाँव अब इनके वंशजों के अधिकार में है। १. हिम्मत् महादुर १८०० ई० में थे, लेकिन उस समय तक यह बहुत अट्ट हो गए रहे होंगे। ..