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३६४. तीरथराज—बैसवाड़ा के ब्राह्मण। जन्म १७४३ ई०।

यह डौंड़़ियाखेरा, अवध के राजा अचलसिह बैस के दरबार में थे। उनकी आज्ञा से इन्होंने १७५० ई० में समर सार का भाषानुवाद किया।

टि०—तीर्थराज ने १७५० ई० (सं० १८०७) में समर सार की रचना की। अतः इसके सात ही वर्ष पूर्व १७४३ ई० में इनका जन्म नहीं हो सकता। यह कवि का रचना काल या उपस्थिति काल है।

—सर्वेक्षण ३२७


३६५. दयानिधि कवि—बैसवाड़ा के। जन्म १७५४ ई०।

डौंड़़ियाखेरा, अवध के राजा अचलसिंह बैस के कहने पर इन्होंने अश्व चिकित्सा का 'शालिहोत्र' नामक ग्रन्थ लिखा। देखिए सं० ७८७।

टि०—१७५४ ई० (सं० १८११) दयानिधि का उपस्थिति काल है।

यह जन्म काल नहीं हो सकता, क्योंकि १७५० ई० इनके आश्रयदाता अचल सिंह (यही ग्रंथ, संख्या ३६४) का उपस्थिति काल है।

—सर्वेक्षण ३३८


३६६. संभुनाथ कवि त्रिपाठी—१७५२ ई० में उपस्थित।

राग कल्पद्रम। यह संभवतः राम विलास के रचयिता शंभुनाथ (सं० ३५७) ही हैं। यह डौंडियाखेरा, अवध के राजा अचलसिंह बैस के दरबार में थे। राव रघुनाथसिंह के नाम पर, इन्होंने इस साल शिवदास कृत संस्कृत 'बैताल पंचविंशतिका' का भाषानुवाद 'बैताल पचीसी' (राग कल्पद्रुम) नाम से किया। इन्होंने ज्योतिष संबंधी ग्रंथ 'मुहूर्त चिंतामणि' का भी विभिन्न छंदों में भाषानुवाद किया था।

टि०—१७५२ ई० (सं १८०९) बैताल पचीसी ही का रचनाकाल है।

—सर्वेक्षण ८४०


३६७. सूदन कवि—जन्म १७५३ ई०।

यह बदन सिंह के पुत्र सुजान सिंह के दरबार में थे। दस छंदों की एक कविता में इन्होंने अनेक कवियों की प्रशस्ति की है। इसका उल्लेख शिव सिंह ने किया है। इनमें से नौ छंद खो गए। शिव सिंह के पास केवल अंतिम छंद बच रहा, जिसे उन्होंने संरोज में दिया भी है, जिसमें निम्नांकित कवियों के नाम हैं—सनेही, सबलसिंह, सरबसुख, शिवदास, शिवराम, सुखलाल, सुनाम (१) सुमेरु, सूरज, सूरति, सेनापति, सेख, सोमनाथ, श्यामलाल, श्रीधर, श्रीपति, हरि, हरिदास, हरिवंश, हरिहर, हीरस (१) हितराम और हुसेन। (मूल ग्रंथ में Sud से संकेतित)।