पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२३

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श्री नगेन्द्र नाथ बसु ने उक्त ग्रन्थ में किया है। ग्रियर्सन ने उक्त ग्रन्थ के प्रथम संस्करण की भूमिका से हिन्दी कवियों और ग्रन्थों की सूचियाँ दी हैं, जिससे यह तथ्य स्पष्ट है। शृंगार संग्रह का उल्लेख सरोज में नहीं है। पर ग्रियर्सन ने न केवल इसका उल्लेख किया है, बल्कि इसमें आये कवियों की सूची भी दे दी है। अतः इसका भी सदुपयोग उन्होंने अवश्य किया है। इसी प्रकार सुन्दरी तिलक में आये कवियों की भी सूची ग्रियर्सन ने दी है। अतः उन्होंने उसका भी सदुपयोग किया है, इसमें संदेह नहीं। सरोज तो इस ग्रन्थ का मूल आधार कहा जा सकता है। भूमिका में इस सम्बन्ध में ग्रियर्सन स्वयम् लिखते हैं:---

"एक देशी ग्रन्थ जिस पर मैं अधिकांश में निर्भर रहा हूँ, और प्रायः सभी छोटे कवियों और अनेक अधिक प्रसिद्ध कवियों के भी सम्बन्ध में प्राप्त सूच- नाओं के लिये जिसका मैं भी हूँ, शिव सिंह द्वारा विरचित और मुंशी नवलकिशोर द्वारा प्रकाशित अत्यन्त लाभदायक शिव सिंह सरोज ( द्वितीय संस्करण १८८३ ई० ) है।

भूमिका पृष्ठ १३

विचित्रोपदेश परवर्ती रचना है। शिव सिंह इसका उल्लेख कर भी नहीं सकते थे। ग्रियर्सन ने इसे देखा था, इसमें संदेह नहीं।

इन पाँचों के अतिरिक्त शेष १३ ग्रन्थों को ग्रियर्सन ने देखा था, यह पूर्ण संदेहात्मक है। इनकी सहायता उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से नहीं, सरोज द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से ली है। सरोज में कवियों के जीवन चरित्र वाले प्रकरण में बराबर इनका उल्लेख होता गया है। सरोज में स्पष्ट लिखा है कि प्रसंग प्राप्त कवि की रचना किस संग्रह में संकलित है। इन्हीं का उल्लेख ग्रियर्सन ने भी अपने ग्रन्थ में कर दिया है। गोसाई चरित तो उन्हें मिली नहीं, ऐसा उल्लेख तुलसीदास के प्रकरण में उन्होंने किया है, फिर उससे सहायता ली ही कैसे जा सकती थी। हाँ, शिव सिंह ने इस ग्रन्थ से एक उदाहरण सरोज में अवश्य दिया है, जिससे स्पष्ट है कि उन्होंने उक्त ग्रन्थ अवश्य देखा था। 'काव्य-निर्णय' में दास जी ने एक कवित्त में कुछ कवियों का नाम लिया है, जिनकी ब्रज-भाषा को उन्होंने प्रमाण माना है। इस कवित्त को शिव सिंह ने उद्धृत किया है। जिस भ्रान्त ढंग से इसका उपयोग उन्होंने किया हैं, उसी देग से ग्रियर्सन ने भी किया है। इन्होंने भी अब्दुर्रहीम खानखाना और रहीम को दो कवि माना है तथा नीलकण्ठ को मिश्र मान लिया है। अतः स्पष्ट है कि ग्रियर्सन ने काव्य निर्णय को शिवसिंह की आँखों देखा है, स्वयं अपनी आँखों नहीं। ग्रियर्सन न तो सदन रचित सुजान चरित्र को जानते