पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२३१

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( २१२ ) सबसे प्रसिद्ध मनभावन (सं०,३७५ ) थे। इनके एक वंशज मकरंद राय (सं०६१०) थे। टि-चंदन राय माहिक पुवावाँ के रहनेवाले थे। यह केशरी सिंह गौड़ के दरबार में थे। गौड़ किसी जगह का नाम नहीं है, जाति का नाम है। इनका रचनाकाल सं० १८१०.६५ है। -सर्वेक्षण २२४ ३७५. मनभावन-मुड़िया जिला शाहजहाँपुर के ब्राह्मण । १७८० ई०, में उपस्थित । राग कल्पद्रुम । यह चंदन राय (सं० ३७४ ) के: १२ शिष्यों में सर्वाधिक . सफल थे । इनका श्रेष्ठतम ग्रंथ शृङ्गार-रत्नावली है।। ३७६. रतन कुँअरि-बनारसी, जन्म १७७७ ई० के आसपास । कृष्ण भक्तों के विवरण संबंधी 'प्रेम रत्न' नामक ग्रंथ की रचयित्री । यह . राजा शिव प्रसाद सी. एस. आई. (सं० ६९९) की पितामही थीं। इनके संबंध में यह महादय मुझे लिखते हैं--"मेरी दादी रतन कुँवरि करीब ४५ वर्ष : पहले मरी, जब मैं १९ वर्ष का ही था और स्वर्गीय महाराज भरतपुर के वकील की हैसियत से गवर्नर जेनरल के अजमेर स्थित एजेंट, कर्नल सदरलैंड की कचहरी में था। उनकी अवस्था, जब उन्होंने दुनिया छोड़ी, ६० और ७० के. बीच थी; मुझे दुःख है कि मैं आपको ठीक ठीक तिथियों नहीं दे सकता। प्रेम रत के अतिरिक्त उन्होंने. अनेक पद भी रचे थे। मेरे पास एक हस्त- लिखित ग्रंथ 'पद की पोथी' है, जिसमें उन्होंने यत्र तत्र अपने ही हाथों अपने पद लिखे हैं। वह अच्छा गाती थीं और बहुत सुंदर लिखती थीं। वह संस्कृत अच्छा जानती थीं, फारसी की भी कुछ जानकारी थी। वह औषधियों भी: जानती थीं। और जो कुछ मैं जानता हूँ, उसका अधिकांश मैंने उनसे ही सीखा।" (१८८७ ई० में लिखित )। टि.-'प्रेम रत' में कृष्ण भक्तों का विवरण नहीं है। इसमें कृष्ण भौर गोपियों का कुरुक्षेत्र में पुनर्मिलन वर्णित है। ३७७. जसवंतसिंह-तिरवा, कन्नौज के बघेल राजा ।.१७९७ ई० में उपस्थित । ____ यह संस्कृत और फारसी के अच्छे जानकार.. थे। इन्होंने अन्य ग्रंथों से श्रृंगार शिरोमणि नामक नायिकाभेद का एक साहित्य ग्रंथ संकलित किया था। इन्होने अलंकार पर भी, संस्कृत के चंद्रालोक के आधार पर, भाषा भूषण ( राग कल्पद्रुम.) नामक एक अत्यंत प्रसिद्ध ग्रंथ और अश्व चिकित्सा संबंधी. शालिहोत्र नामक ग्रंथ लिखा था। ये सभी सुंदर ग्रंथ हैं। यह १८१४ ई० में