पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२४९

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( २३० ) अत्यधिक जनप्रियता के कारण और प्रयुक्त क्षेत्र में अपनी अत्यधिक उपयोगिता के कारण, अपने को बलपूर्वक स्वीकार करा लिया था।'

प्रसंग-प्राप्त इस अर्द्ध शताब्दी में साहित्य का नक्षत्र सबसे उज्ज्वलतम रूप में बुंदेलखंड में, बनारस में तथा अवध में चमका; किंतु स्पष्ट ही अपने प्रकाश के विभिन्न रूपों में । बुंदेलखंड और बघेलखंड में कवि लोग अठारहवीं शती की परंपराओं का पूर्ण रूप से अनुसरण करनेवाले हुए । बीर छत्रसाल की राजधानी पन्ना, विक्रमसाहि के मृदुल आश्रय में सुप्रसिद्ध हुआ चरखारी, नेजाराम के समय से लेकर विश्व-नाथ सिंह के समय तक साहित्य और कला के संरक्षकों के द्वारा प्रख्यात रीवा- ये सभी ऐसे कलाकेंद्र से हो गए थे, जहाँ से प्रसिद्ध और प्रामाणिक काव्यकला सम्बन्धी कृतियों प्रकाश में आया करती थीं। इन्हीं लेखकों ने, केशव एवं चिंतामणि त्रिपाठी का परिधान धारण किया। इनमें पद्माकर ही सम्भवतः सर्वाधिक प्रख्यात हुए। ये लोग विद्वानों द्वारा, और विद्वानों के लिए, लिखित विद्वत्तापूर्ण कृतियों के अन्तिम रचयिता थे । इस सम्पूर्ण अर्द्धशती में बुंदेलखंड उन अर्द्ध-स्वतन्त्र राजाओं का प्रदेश बना रहा, जो परस्पर युद्ध-रत रहा करते थे और जिनके यहाँ मुद्रण-यंत्रों का विशेष प्रचार नहीं हुआ था।

बनारस की स्थिति कहीं दूसरी थी। अटारहवीं शती के अन्त में यहाँ अँगरेजी आधिपत्य हो गया, और विशाल अँगरेजी राज्य के साथ-साथ मुद्रित ग्रंथों का भी प्रवेश हुआ। इसका स्वाभाविक प्रभाव पड़ा। मुद्रण-कला ने जो १. अ. उर्दू की उत्पत्ति के संबंध की धारणा भ्रांत है। यह मुगल किले में उत्पन्न हुई, न . कि बाजार में। व. लल्लू जी लाल ने अरची फारसी के शब्दों को उर्दू में से निकालकर हिंदी की नई सृष्टि नहीं की, उन्होंने विशुद्ध (खड़ी) हिंदी में विदेशी अशुद्ध शब्दों को नहीं आने दिया । स. प्रेमसागर की भाषा न तो नवाविष्कृत भाषा थी और न यह अँगरेजों की कृपा से उत्पन्न हुई और न नए सिरे से यह किसी अभाव की पूर्ति के लिए हिंदुओं द्वारा राष्ट्र भाषा के रूप में गृहीत ही हुई। यदि ऐसा था तो इस एक दम नई भाषा का प्रचलन अँगरेजी राज्य और उसकी प्रतिष्ठा के साथ साथ संपूर्ण भारत के हिंदुओं में हो जाना चाहिए था, जब कि वस्तुस्थिति यह है कि जहाँ यह उत्पन्न की गई—वहीं कलकत्ते में, बंगाल में शसका प्रचार नहीं हुआ। इसका प्रचार वहीं हुआ, जहाँ की यह सामान्य भाषा थी। प्रियर्सन का यह कहना भी ठीक नहीं कि खड़ी वोली हिंदी कहीं की मातृ भाषा नहीं । यह दिल्ली मेरठ की बोली है, जाने क्यों वे यह तथ्य भूल गए ? यह कोई कृत्रिम भाषा । नहीं। यही असली भाषा है, उर्द ही नकली जवान है ! . -अनुवादक २. नेजाराम नहीं, राजाराम। -अनुवादक