पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(१८)

हिन्दी के लगभ ७० ही कवियों के होने का उल्लेख ग्रियर्सन ने किया है। यह भी प्रथम संस्करण की ही ओर संकेत करता हैं।तासी का द्वितीय संस्करण ग्रियर्सन के ग्रन्थ के पंद्रह सोलह साल पहले प्रकाशित हो गया था, फिर भी न जाने क्यों वे इसका उपयोग नहीं कर सके। इसमें हिन्दी के २५० से अधिक कवि और लेखक हैं।

दूसरा ग्रन्थ, जिसकी सहायता ग्रियर्सन ने ली है, विलसन कृत 'रेलिजस सेक्ट्स आफ़ हिन्दूज़' है। प्रायः सभी भक्त कवियों के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ से सहायता ली गई है।

तीसरा ग्रन्थ है टाड की प्रसिद्ध राजस्थान का इतिहास। राजपूताने के चारण कवियों एवं उनके आश्रयदाती राजाओं या राजा कवियों के विवरण एवं तिथियों के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ की सहायता पद पद पर ली गई है।

इनका चौथा सहायक सूत्र है "जर्नले आफ़ रायले एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल," विशेषकर भाग ५३ का एक अंक, जिसमें मैथिल कवियों को इतिहास दिया हुआ है। प्रायः सभी मैथिल कवियों का विवरण इस लेख के आधार पर इस ग्रन्थ में संकलिते हुया है।

लेखन-पद्धति

ग्रियर्सन ने कवियों का इतिवृत्त देते समय निम्नलिखित पद्धति का अनुसरण किया है:—

(१) सर्व प्रथम वे कवि की क्रम संख्या देते हैं। ये संख्या में कुल ९५२ हैं। ७०६ संख्या पर किसी विशेष कवि का उल्लेख न होकर हिन्दी और बिहारी नाटकों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी है। इस प्रकार इस ग्रन्थ में कुल ९५१ कवियों का विवरण है। आगे चलकर विनोद में भी यही पद्धति अपनाई गई।

(२) क्रमसंख्या देने के अनन्तर कवि का नाम देव नागरी अक्षरों में दिया गया है। इस सम्बन्ध में दो नियमों का पालन किया गया है। पहले तो नामों को उस ढंग से लिखा गया है, जिस ढङ्ग से सर्वसाधारण उनका उच्चारण करते हैं। पढ़े लिखे शिष्ट जनों के उच्चारण को महत्व नहीं दिया गया है, यद्यपि साहित्यकारों के सम्बन्ध में यही पद्धति अपनाई जानी चाहिये थी। इस प्रकार बल्लभाचार्य न लिखकर बल्लभाचारज लिखा गया है। इस पद्धति की परित्याग कतिपय जीवित भारतीय साहित्यकारों के ही सम्बन्ध में इस सिद्धान्त पर किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वेच्छानुसार अपना नाम