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जमुना लहरी (१८२२ ई० में लिखित) इत्यादि। यह देवदत्त (सं० ५०८) और पद्माकर (सं० ५०६) के प्रतिद्वन्दी थे।

टि०—ग्वाल कवि का जन्मकाल सं० १८४८ और मृत्यु काल सं० १९२८ है। साहित्य दर्पण और साहित्य दूषण सम्भवतः एक ही ग्रंथ हैं। इसी के नाम कवि दर्पण या दूषण दर्पण भी हैं। भक्ति भाव का नाम भक्ति भावना भी है। श्रृङ्गार दोहा और श्रृङ्गार कवित्त फुटकर संग्रह है। पद्माकर, ग्वाल और दत्त तीनों कभी एक साथ नहीं रहे।

—सर्वेक्षण १८८


५०८. देवदत्त—साढ़ि जिला कानपुर के ब्राह्मण। १८१५ ई० में उपस्थित।

यह चरखारी के बुन्देला राजा खुमान सिंह के दरबारी कवि थे। यह पद्माकर (सं० ५०६) और ग्वाल (सं० ५०७) के समसामयिक और प्रतिद्वन्दी थे। यह सम्भवतः वही हैं जिनका उल्लेख कवि दत्त नाम से दिग्विजय भूषण में हुआ है।

टि०—कवि दत्त (४७५) और यह देवदत्त (५०८) एक ही कवि हैं। इनका रचनाकाल स० १७९१-१८३९ है। अत: १८१५ ई० (सं० १८७२) तक इनका जीवित रहना समीचीन नहीं प्रतीत होता। उक्त संवत अशुद्ध है।

—देखिए यही ग्रंन्थ, संख्या ४७५


५०९. भानदास कवि—बुन्देलखण्डी, चरखारी के भाँट और कवि। १८१५ ई० में उपस्थित।

यह चरखारी के राजा खुमान सिंह के दरबारी कवि थे। इन्होंने रूप विलास नाम पिंगल ग्रंथ लिखा था।

टि०—खुमान सिंह का शासनकाल सं० १८३९ तक है। यही इन भानदास का भी समय होना चाहिए। १८१५ ई० (सं० १८७२) तक इनका जीवित रहना संभव नहीं प्रतीत होता। उक्त संवत् अशुद्ध है।

—सर्वेक्षण ६१७


५१०. पजनेस कवि—बुन्देलखण्डी। जन्म १८१६ ई०।

श्रृंङ्गार संग्रह। यह परना में रहते थे। इन्होंने भाषा साहित्य का एक बहुत अच्छा ग्रंथ मधुप्रिया नाम का लिखा। इनकी कविताएँ अलंकार (Conceit) और साहित्य के लिए प्रसिद्ध हैं। इनका श्रेष्ठतम नमूना नखशिख है। यह फ़ारसी के अच्छे ज्ञाता थे।


५११. बलभद्र—कायस्थ। बुन्देलखण्डी, परना के। जन्म १८४४ ई०।

यह परना के बुन्देला राजा नरपति सिंह के दरबारी कवि थे। संभवतः