पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२५५

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( २३६ ) यह विक्रम साहि (सं०५१४) के दरबारी कवि थे और नीति संबंधी तथा सामयिक कविताएँ लिखा करते थे। साहिन प्रसाद सिंह के 'भाषा सार में इनकी रचनाओं का संग्रह मिलेगा। गासी द तासी के अनुसार, भाग १, पृष्ठ ११८, इनका पूरा नाम संतोषराय वेताल था और यह उर्दू में लिखा करते थे, यह मुहम्मद कियाम के समसामयिक और शिष्य प्रतीत होते हैं। .. . टिo--हिदी और उर्दू के ये दोनों कवि एक ही नहीं हैं। ५१६. बीर कवि-बीर वाजपेयी उपनाम दाऊ दादा, मंडिला वाले। १८२० ई० में उपस्थित । अपने भाई विक्रमसाहि (सं० ५१४ ) की ललकार के उत्तर में लिखे गए 'प्रेम दीपिका' नामक ग्रंथ के रचयिता । हि-वीर कवि के भाई ५१४ संख्यक विक्रमसाहि से भिन्न हैं। मंडला जबलपुर जिले में है। प्रेम दापिका की रचना सं० १८१८ में हुई थी । अतः १८२० ई० (सं० १८७७ ) में इनका जीवित रहना संभव नहीं। उक्त सन् अशुद्ध है। -सर्वेक्षण ५११ ५१७. मान कवि-बुंदेलखंडी, चरखारी के बंदीजन और कवि। .१८२० ई०. में उपस्थित । यह विक्रम साहि (सं० ५१४ ) के दरबारी कवि थे। यह संभवतः वही मान कवि हैं, जिनका शांत रस के कवि के रूप में शिव सिंह ने उल्लेख किया है। . टि०- यह मान कवि १७० संख्यक खुमान हैं । सरोज ( सर्वेक्षण ६२९) के शांत रस वाले मान भी यही हैं। -सर्वेक्षण १३५, ७०२, ६२९ ५१८. बलदेव कवि-बुंदेलखंडी, चरखारी के, १८२० ई० में उपस्थित । . यह विक्रम साहि (सं० ५१४) के दरबारी कवि थे । मिलाइए सं० ५४३ । टि-चरखारी वाले बलदेव जयसिंह' (शासनकाल १९१७-३७) के . दरबारी कवि थे। यह खुमान के पौत्र हैं। १८२०ई० ( सं० १८७७ ) में .. यह उपस्थित नहीं रह सकते । यह इनका जन्मकाल भी नहीं हो सकता। -सर्वक्षण ५०० . ५१९, बिहारीलाल-बुंदेलखंडी भाट, उपनाम भोज कवि, चरखारी के रहने- वाले, १८४० ई० में उपस्थित । यह चरखारी के राजा रतन सिंह बुंदेला उपनाम रतनेस (मिलाइए सं० १४९ का पुनश्च और सं० ३४४ का पुनश्च ) के दरबारी कवि थे। इनके