पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२५८

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( २३९ ) कवि हरिनाथ (सं० ११४) को केवल एक दोहे पर एक लाख रुपये दिए थे। इस राजा ने न केवल वंशगत उदारता और दानशीलता की रक्षा की, बल्कि सर्व संग्रह नामक संस्कृत की रचना भी की। इन्होंने कबीर के बीजक ( सं० १३, १५) और तुलसीदास (सं० १२८ ) की विनय पत्रिका पर टीकाएँ लिखीं। इनका एक और सुन्दर भाषा काव्य 'रामचन्द्र की सवारी' है। टि-विश्वनाथ सिंह का शासनकाल सं० १८९२-१९११ है, न कि सं० १८७०-१८९१ ( १८१३-१८३४ ई.)। अकबर के सम सामयिक इनके पूर्वज का नाम राजा रामचन्द्र सिंह बघेला था, न कि नेजाराम सिंह' । --सर्वेक्षण ५४८ ५३०. अजबेश नवोन भाट--१८३० ई० के आसपास उपस्थित । सुंदरी तिलक। यह बाँधो के महाराज विश्वनाथ सिंह (सं० ५२९) ( १८१३-१८३४ ई.) के दरबारी कवि थे। देखिए अजवेश संख्या २४ । मुझे इस पुराने कवि पर सन्देह है। असंभव नहीं कि संख्या २४ में जिस कविता का हवाला दिया गया है, वह इसी कवि की हो, जिस पर इस समय विचार किया जा रहा है। टि०-नियर्सन का सन्देह ठीक है । अजबेस प्राचीन नाम का कवि कोरी कल्पना है। इन अजबेस ने सं० १८६८ में बिहारी सतसई की टीका की थी। यह विश्वनाथ सिंह के पिता जयसिंह के भी दरबारी कवि थे। सर्वेक्षण ३ ५३१. गोपाल कवि-बघेलखण्डी, बौधो के कायस्थ । १८३० ई० के आस- पास उपस्थित। यह बौधो-नरेश महाराज विश्वनाथ. सिंह (सं० ५२९ ) ( १८१३- १८३४ ई.) के मंत्री थे। इनका प्रमुख ग्रंथ 'गोपाल पचीसी' है। - टि-गोपाल पचीसी या शृङ्गार पचीसी का रचनाकाल सं० १८८५ है। -सर्वेक्षण १६५ - विश्वनाथ सिंह का शासन काल १८१३-१८३४ ई० अशुद्ध है। ५३२. रघुराज सिवा-बाँधो, बघेलखण्ड के बघेल महाराजा। जन्म १८२४ ई०, सिंहासनारोण काल १८३४ ई०, १८८३ ई० में जीवित । सुन्दरी तिलक । भागवत.पुराण के आनन्दाम्बुनिधि नामक अत्यन्त प्रसिद्ध अनुवाद के रचयिता । सुन्दर शतक (१८४७ ई० में लिखित ) नामक हनुमान के इतिहास और अन्य ग्रन्थों के रचयिता।