पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२६४

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. ( २४५ ) . टिo-लाल चन्द्रिका लाल बनारसी की कृति नहीं है । ६२९ संख्यक लल्लू जी लाल की कृति है। -सर्वेक्षण ८०१ ५६२. हरि परसाद-बनारसी । १७७५ ई० के आसपास उपस्थित । बनारस के राजा चेतसिंह (१७७०-१७८१) के कहने पर इन्होंने बिहारी ( सं० १९६) की सतसई का अत्यन्त ललित संस्कृत पद्यानुवाद किया था। ... टिoयह संस्कृत टीका सं० १८३७ में रची गई थी।- .

यही ग्रंथ, सं० १९६ टिप्पणी।

५६३. बलवान सिच-बनारस के राजकुमार, १८०० ई० के आसपास उपस्थित। यह राजा चेतसिंह ( मृत्यु १८१० ) के पुत्र थे। शिवसिंह सरोज में इनका उल्लेख ग्रंथकार रूप में हुआ है, पर उसमें यह नहीं लिखा है कि इन्होंने क्या लिखा। टि-~~-शिवसिंह सरोज में इन्हें 'सं० १८४९ में उ०' कहा गया है और इनके ग्रंथ का नाम चिन्न चन्द्रिका' दिया गया है। उक्त संवत् १८८९ इसी चित्र चन्द्रिका का रचना काल है। पर न जाने कैसे ग्रियर्सन का ध्यान इस तथ्य पर नहीं गया। ५६४. गोकुलनाथ बंदीजन-बनारसी । १८२० ई० के आसपास उपस्थित । · राग कल्पद्रुम, सुंदरी तिलक। यह कवि रघुनाथ (सं० ५५९) बनारसी

के पुत्र थे। इनका घर चौरा गाँव में था, जो पंचकोशी के भीतर है । इनकी
, चेत चन्द्रिका कवियों में प्रमाण मानी जाती है। इसमें इन्होंने अपने आश्रय-

दाता बनारस के राजा चेत सिंह.( १७७६ ई० में उपस्थित, १८१० ई० में मृत ) के कौटुम्बिक इतिहास का वर्णन किया है। इनका एक दूसरा सुन्दर ग्रंथ 'गोविन्द सुखद विहार है। महाभारत ( राग कल्पद्रुम ) का भाषानुवाद बनारस के राजा उदित नारावण (. १७९५-१८३५ ई० ) के कहने पर हुआ था। इस अनुवाद कार्य में इनका प्रमुख हाथ था। इसको इन्होंने अपने पुत्र गोपीनाथ (सं०५६५) और गोपीनाथ के शिष्य मणिदेव (सं० ५६६) के साथ पूरा किया था। इस अनुवाद का पूर्ण नाम 'महाभारत दर्पण' है, और इसके उपसंहार का 'हरिवंश दर्पण', जो १८२९ ई० में कलकत्ते में छपा। गार्मा द तासी लिखता है.---"महाभारत के और भी हिंदुस्तानी अनु- वाद हैं । जिनसे मैं परिचित हूँ, ये हैं :-