पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२६६

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। ( २४७) उनका शेष जीवन विभिन्न प्रकार की लघु रचनाओं में लगा । जो हो, इनकी अधिक प्रसिद्धि अनुवाद के ही कारण है। दि७-मणिदेव गोकुलनाथ के शिष्य थे, न कि गोपीनाथ के । ५६६. मनिदेव-दीजन बनारसी । १८२० ई० के आसपास उपस्थित । सुंदरी तिलक। यह गोपीनाथ (सं० ५६५ ) के शिष्य थे। उनके और गोकुलनाथ (सं० ५६४ ) के साथ इन्होंने महाभारत के प्रसिद्ध अनुवाद में प्रमुख भाग लिया। . टि-मणिदेव गोकुलनाथ के शिष्य थे, न कि गोपीनाथ के। ५६७. पराग कवि-बनारसी । १८२० ई० के आसपास उपस्थित । यह बनारस के राजा उदित नारायण सिंह ( १७९५-१८३५) के दरबारी - कवि थे। इन्होंने अमरकोष का भाषानुवाद किया। (१ राग कल्पद्रुम, मिलाइए सं० १७०, ५८९, ७६१)। ५६८. राम सहाय-कायस्थ, बनारसी। १८२० ई० के आसपास उपस्थित । राग कल्पद्रुम । यह बनारस के राजा उदित नारायण सिंह ( १७९५- १८३५ ) के दरबारी कवि थे। इन्होंने पिंगल का एक ग्रंथ वृत्त तरंगिणी सतसई-लिखा। • टि०-वृत्त तरंगिणी एक ग्रंथ है, सतसई दूसरा । ५६९. देव कवि-बनारसी, उपनाम : काष्ठ जिह्वा स्वामी। १८५० ई० के आसंपास उपस्थित ! सुंदरी तिलक, शृङ्गार संग्रह । इन्होंने काशी में संस्कृत पढ़ी। एक अवसर पर यह अपने गुरु से लड़ पड़े, और बाद में अपना अनुताप प्रकट करने के लिए, अपनी जिह्वा काट डाली और बदले में काठ की एक नकली जीम लगा ली। दूसरे से यह पट्टी पर लिखकर वार्ता किया करते थे। यह बनारस के .महाराज ईश्वरी नारायण सिंह (१८३५ ई० में सिंहासनासीन हुए; १८८३ ई० में जीवित थे) के गुरु थे। उक्त काशी नरेश ने इन्हें रामनगर में बसा दिया था, जहाँ इन्होंने विनयामृत (भजनों का संग्रह), रामायण परिचर्या और अन्य ग्रंथ लिखे । ( देखिए हरिश्चन्द्र, प्रसिद्ध महात्माओं का जीवन चरित्र, भाग २, पृष्ठ ३०)। इनके भजन अब भी बनारस दरबार में गाए जाते हैं। to-इन देव स्वामी की रचनाएँ सुंदरी तिलक एवं श्रृंगार संग्रह में नहीं हैं, शृंगारी देव की हैं। इन्होंने अपनी जिह्वा काट नहीं ली थी, उसपर काठ की खोल चढ़ा ली थी।