पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२६७

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( २४८) ५७०, ठाकुर परसाद त्रिपाठी-किशुनदासपुर, जिला रायबरेली वाले । जन्म १८२५ ई०, १८६३ ई० में उपस्थित । यह संस्कृत साहित्य के बड़े विद्वान थे । १८६३ ई० में इन्होंने बड़े . . . परिश्रम से रस चंद्रोदय नामक काव्य संग्रह पूर्ण किया। इसमें २४२.कवियों की रचनाएँ हैं। इन्हें इन्होंने बुंदेलखंड में प्रायः घर घर घूमकर एकत्र की थीं। तदनंतर यह बनारस चले आए; जहाँ यह गनेश (सं० ५७३) और ... सरदार (सं० ५७१) आदि कवियों के मित्र हो गए । अवध के रईसों से इन्हें बड़ी प्रतिष्ठा मिलती थी। यह १८९७ ई० में दिवंगत हुए और अपने पीछे बहुत बड़ा और बहुमूल्य पुस्तकालय छोड़ गए, जिसको इनके पुत्रों ने बेंच खाया। टि०-ठाकुर प्रसाद जी की मृत्यु १८९७ ई० में नहीं, १८६७ ई० (सं० १९२४) में हुई थी। . . . -सर्वेक्षण ३१२ ५७१. सरदार-बनारसी, वर्दीजन और कवि । १८८३ ई० में जीवित ।। सुंदरी तिलक, शृङ्गार संग्रह । यह काशी नरेश महाराज ईश्वरीनारायण सिंह के दरबारी कवि थे और हरिजन कवि (सं० ५७५ ) के पुत्र थे । इनका बड़ा नाम है। यह ठाकुर प्रसाद त्रिपाठी (सं० ५७० ) के मित्र और नारायण राय (सं०.५७२) के गुरु थे। यह (१) साहित्य सरसी, (२) हनुमत भूषण, (३) तुलसी भूषण, (४) मानस भूषण, (५) कवि प्रिया का तिलक (सं० १३४), (६) रसिक प्रिया का तिलक (सं० १३४ ), (७) बिहारी .. सतसई का तिलक ( सं० १९६), (८) शृङ्गार संग्रह, और (९) सूरदास के ३८० दृष्टकूटों का तिलक आदि ग्रन्थों के . रचयिता हैं। इनमें से आठवों ग्रंथ ( नवल किशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित) अलंकार शास्त्र . का अत्यन्त प्रिय ग्रंथ है। इसकी यह · सर्वप्रियता . उचित ही है। काव्यकला के प्रायः सभी अंगों का विवेचन इसमें है। यह १८४८ ई० में । लिखा गया है। इसका उल्लेख मूल ग्रंथ में 'Sring' से हुआ है। इसमें - निम्नलिखित कवियों की रचनाएँ हैं :- चतुर्भुज ( संख्या ४०) परबत (सं० ७४) नारायण दास (सं० ५१) कृष्ण जीवन (१ सं० ७७, ४३८) परशु राम (सं० ५५) । शिक (१ सं०.८८) रसखान (सं०६७) अमरेश (सं. ९०) केहरी (सं०.७०) ..। अकबर ( सं० १०४).