पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२७०

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( २५१) . (सं० ३७७ ) का छंदात्मक भाष्य और कवि प्रिया (सं० १३४) का तिलक किया । यह. अनेक शृंगारी छंदों के भी रचयिता हैं । ५७३, गनेस कवि-बंदीजन बनारसी । १८८३ ई० में जीवित । यह महाराज ईश्वरी नारायण सिंह के दरबारी कवि थे। यह रसचंद्रोदय के कर्ता ठाकुर प्रसाद ( सं०.५७०) के मित्र थे। ५७४. बंसीधर-बनारसी । जन्म १८४४ ई० । यह गनेस बंदीजन ( सं० ५७३ ) के जो १८८३ ई० में जीवित थे, पुत्र थे। यह भाषा साहित्य के 'साहित्य वंशीधर नामक ग्रंथ और चाणक्य राज- नीति के भाषा राजनीति (? राग कल्पद्रुम । देखिए सं० ८४०, ९१९) नामक अनुवाद-ग्रंथ के रचयिता हैं। यह नीति संबंधी दो अन्य ग्रंथों 'विदुर प्रजागर' और 'मित्र मनोहर' के भी रचयिता हैं। संभवतः यही शिवसिंह द्वारा बिना तिथि के ही उल्लिखित 'वंशीधर' और 'वंशीधर कवि' भी है। दि०-१८४४ ६० (सं० १९०१) जन्मकाल नहीं है, उपस्थिति काल है, क्योंकि इसके ६ ही वर्ष बाद सं० १९०७ में बंशीधर बनारसी ने साहित्य तरंगिणी नाम ग्रंथ लिखा था। साहित्य बंशीधर का ही नाम बिदुर प्रजागर है। इसी प्रकार भाषा राजनीति का ही नाम मिन्न मनोहर है । भाषा राजनीति या मिन्न मनोहर बंशीधर बनारसी की रचना नहीं है। यह बंशीधर प्रधान की कृति है । इसकी.रचना सं० १७७४ में हुई थी। ---सर्वेक्षण ५८५ - . सरोज (सर्वेक्षण ५२४) के 'वंशीवर' वल्लभ संप्रदाय के कवि हैं, और (सर्वेक्षण ५२८) 'वंशीधर कवि' संभवतः दलपतिराय के साथ वाले वंशीधर हैं । अतः ये वंशीधर बनारसी से भिन्न हैं। ५७५. हरिजन कवि-ललित पुर के । जन्म ( १ उपस्थिति ) १८५१ ई० । इन्होंने रसिक प्रिया (सं० १३४) की टीका बनारस के महाराज ईश्वरी नारायण सिंह के नाम पर की है । यह कवि सरदार (सं० ५७१) के पिता थे। टि०-१८५१ ई० (सं० १९०८) इनका उपस्थिति काल है, क्योंकि इसके तीन वर्ष पूर्व सं० १९०५ में इनके पुत्र सरदार ने शृङ्गार संग्रह नामक काव्य संग्रह संकलित किया था। रसिकप्रिया की टीका सरदार की बनाई हुई है, न कि इनके बाप हरिजन की । सरोज में यह उल्लेख प्रमाद से ही हो गया है। - सर्वेक्षण १००१