पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२७२

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५८०. गोपाल चंद्र साहू-उपनाम गिरिधर बनारसी उर्फ गिरिधर दास । जन्म १८३२ ई . - सुन्दरी तिलक । यह काले हर्षचंद्र के पुत्र और बनारस के प्रसिद्ध हरिश्चंद्र (सं० ५८१) के पिता थे। इनके प्रमुख ग्रंथ 'दशावतार' और 'भारती भूषण' हैं। भारती भूषण, भाषा-भूषण की टीका है। हरिश्चंद्र अभी १८८५ ई० में मरे हैं । देखिए गार्सी द तासी, भाग १, पृष्ठ १९१ ।। ... टि०-दशावतार का नाम 'दशावतार कथामृत' है। इनका जन्म पौष कृष्ण १५, संवत् १८९० को हुआ था। इनकी मृत्यु वैशाख सुदी ७, सं० १९१७ को हुई। -~~सर्वेक्षण १६३ ५८१. हरिश्चन्द्र-बाबू हरिश्चन्द्र बनारसी | जन्म ९ सितम्बर १८५० ई० । सुन्दरी तिलक । ..आज के देशी कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध । इन्होंने भाषा साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए किसी भी जीवित भारतीय की अपेक्षा अधिक कार्य किया है। इन्होंने अनेक शैलियों में स्वयं प्रचुर परिमाण में लिखा है और हर एक शैली में यह बढ़े-चढ़े हैं। यह अनेक वर्षों तक भाषा की एक अत्यन्त सुन्दर पत्रिका 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' चलाते रहे थे। यह गोपाल चन्द्र साहू, उपनाम गिरिधर बनारसी (सं०५८० ) के पुत्र थे, जिन्होंने स्वयं बहुत अधिक लिखा है और जो २७ ही वर्ष की वय में १८५९ ई० में . परलोक सिधारे थे, जब कि हरिश्चन्द्र केवल ९ वर्ष के बालक थे। इस बालक को कींस कालेज बनारस में शिक्षा मिली और इसने बहुत ही कम उम्र में रचना प्रारम्भ कर दी थी।, १८८० ई० में इनका यश इतना फैल गया था कि सभी पत्रों ने एक स्वर से इन्हें भारतेन्दु की उपाधि प्रदान की थी। यह १८८५ ई० में दिवंगत हुए। इनके लिए सर्वसाधारण ने. समान रूप से शोक मनाया, क्योंकि सभी की राय में यह 'अजात शत्रु' थे । अपने सुन्दरी तिलक (इस ग्रंथ में Sun से संकेतित ) नामक काव्य संग्रह के लिए, जो १८६९ ई० .(सं० १९२६ ) में प्रकाशित हुआ और जिसमें ६९ कवियों के सवैया छन्दों का संकलन हुआ है, यह सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं । (सं० ७०६ भी देखिए)। कुछ लोगों के अनुसार यह संग्रह इनके निर्देशानुसार पुरुषोत्तम सुकल द्वारा संकलित हुआ। इसके अनेक संस्करण हुए हैं। इनके नवीनतम ग्रंथों में 'प्रसिद्ध महात्माओं का जीवन चरित्र' है, जिसमें यूरोपीय और भारतीय अनेक बड़े लोगों के सुन्दर जीवन चरित्र हैं। यह निःसन्देह सबसे बड़े आलोचक थे, जिसे उत्तरी भारत ने अब तक उत्पन्न किया है। इनके जीवन का संक्षिप्त