पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२८

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    • पंच नली, जो नैषध में एक कठिन स्थान है, उसको भी सलिल कर दिया

इसका जो अनुवाद ग्रियर्सन ने किया है, उसका हिन्दी रूपान्तर यह है:-

    • इन्होंने पचनलीय पर, जो नैषध का एक अत्यन्त कठिन अंश है, सलिल

नाम की एक विशेष टीका लिखी ।” ग्रियर्सन को इस सम्बन्ध में संदेह था। अतः उन्होंने इस सलिल पर यह पाद टिप्पणी दे दी है :- “अथवा शिवसिंह को, जिनसे मैंने यह लिया है, यह अभिप्राय है कि उन्होंने पंचनलीय को बिल्कुल पानी की तरह स्पष्ट कर दिया है । | चतुरसिंह राना के सम्बन्ध में शिवसिंह ने लिखा है :---‘सीधी बोली में कवित्त हैं । उदाहरण से स्पष्ट है कि शिवसिंह का अभिप्राय खड़ी बोली से है। ग्रियर्सन ने सीधी बोली का अनुवाद “सिम्पुल स्टाइल किया है। | इसी प्रकार शिवसिंह ने चुप शंभु कवि के सम्बन्ध में लिखा है इनकी काव्य निराली है । सरोज में काव्य सर्वत्र स्त्रीलिंग में प्रयुक्त हुआ है । ग्रियर्सन ने निराली को ग्रन्थ समझ लिया है। ग्रियर्सन को आधार मानकर यदि कोई अन्वेषक सिर मारता पिपरे, तो असम्भव नहीं। इतिहास लेखक तो इस कवि के इस निराले ग्रन्थ “निराली का उल्लेख सहज ही कर सकते हैं। ग्रियर्सन में कुल ९५१ कवि हैं। इनमें से निम्नांकित ६५ कवि अन्य सूत्रों से लिए गये हैं, जिनमें विलसन कृत रेलिजस सेक्टस आफ़ द हिन्दूज़ और जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी अफ़ बंगाल ( विशेष कर अंक ५३ ) प्रमुख हैं। मैथिल कवि इसी अंक से लिये गये हैं । १९ जोधराज ।३।११ भवानन्द ५११५ श्रुतगोपाल ७११८ उमापति मैथिल ९/४९ हठी नारायण २।१० रामानन्द ४|१४ भगोदास ६।१७ विद्यापति मैथिल ८।१९ जयदेव मैथिल १०।५८ ध्रुवदास १. यही ग्रन्थ, संख्या ८३७ ।