पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२८०

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( २६१ ) नाम लिया जा सकता है। यह मनोज लतिको, देवी चरित्र सरोज और त्रिदीप (भरथरी शतक का भाषानुवाद ) आदि के रचयिता हैं। यह मानसिंह (सं० ५९९) के पुत्र प्रतीत होते हैं । देखिए सं० ६०२। टि-माधव सिंह अमेठी के राजा थे। छितिपाल इनका उपनाम था। अमेठी के पहले. 'गोची' लगा हुआ है। यह ग्रियर्सन के प्रमाद का प्रमाण है। वे लिखना चाहते थे 'बन्धल गोत्री'; बन्दल लिखने से या छपने से छूट गया और गोत्री' का 'गोची' हो गया । ५८९ संख्यक उमराव सिंह इसके पूर्वज नहीं थे, यह तो बिसवाँ जिला सीतापुर के कायस्थ थे। बरूदेव सिंह (सं० ६०२) राजा मानसिंह 'द्विजदेव' अयोध्या नरेश और माधव सिंह, छितिपाल, अमेठी नरेश, इन दोनों के साहित्य गुरु थे। ए दोनों पिता-पुत्र नहीं हैं । यह कल्पना ही उपहासास्पद है, दोनों समकालीन हैं, दो जगहों के राजा हैं और दो विभिन्न वर्गों के हैं। ६०५. क्रिशनदत्त सिद्ध-भिनगा जिला बहराइच के बिसेन राजपूत राजा । जन्म १८५२ ई०। यह राजा न केवल स्वयं कुशल कवि थे, बल्कि अपने राज्य में कवियों के सदैव संरक्षक भी थे। इनके पूर्वजों में प्रसिद्ध कवि जगत सिंह (सं० ३४०) हुए हैं। शिवदीन (सं० ६०६ ) तथा अन्य अनेक अप्रसिद्ध कवि इन्हीं के दरबार में रहे। इस समय भी इनके परिवार के लोग कवियों के बड़े आश्रयदाता हैं। टि–इनके आश्रित कवि शिवदीन ने इनके और अवध के नवाब के नाजिम महमूदअली खों के बीच हुए सं० १९०३. के युद्ध का वर्णन 'कृष्णदत्त रासा' नाम ग्रंथ में किया है। अतः १८५२ ई० (सं० १९०९ ) इनका उपस्थितिकाल है, न कि जन्मकाल । .. -~-सर्वेक्षण १०४ ६०६. सिवदीन कवि-भिनगा जिला बहराइच के । जन्म १८५८ ई० । ___ यह भिनगा के गजा कृष्णदत्त सिंह के दरबारी कवि थे और उनके नाम पर एक ग्रंथ 'कृष्णदत्त भूषण' नामक लिखा है । टि०-१८५८ ई० (सं० १९१५) शिवदीन का उपस्थितिकाल है, जन्मकाल नहीं। यह विल ग्रामी थे। इनका लिखा'कृष्णदत्त रासा' सं० १९०१ के एक युद्ध का वर्णन करता है।