पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२८४

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( २६५ ) टिरामनाथ प्रधान वैश्य थे। इनका जन्म सं० १८५७ में हुआ था। अतः १८४५ ई० (सं० १९०२ ) इनका उपस्थिति काल है। इनकी मृत्यु सं० १९२५ में हुई। सर्वेक्षण ७२४ ६२५. गिरिधारी-ब्राहाण, सातनपुर के एक वैसवाड़ा | जन्म १८४७ ई० । शृंगार संग्रह । इनकी कविताएँ या तो कृष्ण लीला संबंधी है अथवा शांत रस की हैं। यह कोई बहुत पढ़े लिखे नहीं थे, पर अच्छा लिखते थे। • टि-यह बैसवाड़ा के अंतर्गत सातनपुरवा के रहनेवाले थे। १८४७ ई. (सं० १९०४) इनका उपस्थिति काल है । -सर्वेक्षण १५९ ६२६, हिमाचलराम कवि-भटौली जिला फैजाबाद के ब्राह्मण । जन्म १८४७ ई० सीधी सादी कविता है। टि.--१८४७ ई० (सं० १९०६) उपस्थिति काल है। इनकी मृत्यु सं० १९१५ में हुई। ---सर्वेक्षण ९९२ ६२७. चैन सिद्ध-उपनाम हरचरन, खत्री, लखनऊ के । जन्म १८५३ ई०। __ शृङ्गार संग्रह | इन्होंने भारत दीपिका' और 'शृङ्गार सारावली' लिखी हैं। यही संभवतः वह दूसरे चैन कवि भी हैं, जिनका उल्लेख शिव सिंह ने किया है। टि०-चैन सिंह चैन से भिन्न हैं। -~-सर्वेक्षण २३३, २३२ भाग ४, विविध ६२८. जैचन्द-जयपुर के । १८०६ ई० में उपस्थित ।। स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा नामक, जैन संप्रदाय के सिद्धान्तों का विवेचन करनेवाले, सं० १८६३ वि० ( १८०६ ई०) में विरचित, संस्कृत एवं भाषा ग्रन्थ के कर्ता। ६२९. लल्लू जो लाल---गुजराती, आगरावाले। १८०३ ई० में उपस्थित । निम्नलिखित ग्रन्थों के सुप्रसिद्ध रचयिता: (१) प्रेम सागर ( राग कल्पद्रुम) यह ऊपर वाले साल में मार किस आफ वेलेजली की सरकार की अधीनता और डाक्टर जान गिलक्रिष्ट के निर्देशन