पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

सहायता की थी। फोर्ट विलियम कालेज के उस समय के हिंदुस्तानी के प्रोफ़ेसर श्री जेम्स मोआट ने तारिणीचरण मित्र को यह अन्य देखकर ब्रजभाषा के उन सब शब्दों को, जो सामान्य हिंदुस्तानी में नहीं व्यवहत होते थे, छाँट देने का काम सौंपा था। इसके सिवा मैं इतना और कह सकता हूँ कि 'इसी ग्रन्थ के इसी नाम से अन्य अनुवाद भी शंभुनाथ (सं० ३६६ ) और भोलानाथ (सं०८८६) द्वारा किए गए थे। (१०) माधोनल या माघवानल की आख्यायिका ( देखिए सं० ८७२)इसके भी संपादन में इन्हें मजहर अली खाँ विला की सहायता लेनी पड़ी थी ( गासी द तासी)। यह मोतीराम (सं० २१६) कृत इसी नाम के अनुवाद ग्रन्थ का अनुवाद है। माधवानल और कामकंदला की कथा बहुत पुरानी है । बंगाल एशियाटिक सोसाइटी के पुस्तकालय में मूल संस्कृत अन्य की एक प्रति है, जिसका प्रतिलिपि काल सं० १५८७ या १५३० ई० है । ( राजेंद्र लाल मित्र-'नोटिसेज़ आफ संस्कृत मैनुस्कृष्टस, भाग २, पृष्ठ १३७)। कहानी यह है:- पुफावती नगरी (मध्यप्रदेश के बिलहरी का पुराना नाम ) में ९१९ संवत् या ८६२ ई० में राजा गोविंद राव शासन करता था। उसके यहाँ एक अत्यंत सुंदर ब्राह्मण नौकर था, जिसका नाम माधवानल था, जो नाचने गाने में विशेष रूप से प्रवीण था, साथ ही अन्य सभी कलाओं और विज्ञान में भी दक्ष था। इसलिए सभी रमणियों उसके प्रेम में पड़ जाती थीं। उनके पतियों ने राजा से शिकायत की और माधवानल पुफावती से निर्वासित हो गया । वह राजा कामसेन की राजधानी कामवती चला गया। राजा वाद्य और संगीत का प्रेमी था । उसने इस ब्राह्मण को अपने दरबार में स्थान दे दिया। राजा के पास एक बहुत ही खूबसूरत वेश्या कामकंदला नाम की थी। माधवानल इसके प्रेम में पड़ गया। इसके लिए यह कामवती से भी निकाला गया। तब यह . उज्जैन गया । वहाँ का राजा विक्रमादित्य याचकों की प्रत्येक प्रार्थना स्वीकार कर लेने के लिए प्रसिद्ध था। इस राजा से माधवानल ने याचना की। राजा ने प्रार्थना पूरी करने का वचन दिया । तब ब्राह्मण ने कामकंदला उसे दिलवा देने की प्रार्थना की। तदनुसार विक्रमादित्य ने कामवती को घेर लिया। कामकन्दला पकड़ी गई और तत्काल माधवानल को दे दी गई। कुछ दिनों के अनन्तर, विक्रम की आज्ञा से, यह सुखी दम्पति, पुफावती को लौट आया जहाँ माधवानल ने कामकन्दला के लिए एक महल बनवाया, जिसके खंडहर अब भी दिखाए