पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

२७०) तक इनके जीवित रहने की ही सम्भावना है। इनका रचना काल सं० १८४० के पूर्व होना चाहिए । अतः प्रियर्सन का समय पूर्णतः भ्रांत है। -सर्वेक्षण ८५५ ... ६३३. दिनेस कवि-टिकारी जिला गया के । १८०७ ई० में उपस्थित । . शृङ्गार संग्रह । ऊपर वाले साल में इन्होंने प्रख्यात और परम प्रशंसित. एक नखशिख 'रस रहस्य' नाम का लिखा । ( रामदीन सिंह, खड्गविलास प्रेस, बाँकीपुर द्वारा प्रकाशित)। टि–रस रहस्य' का रचना का सं० १८८१ है। काव्य कदेव की रचना सं० १८९१ में हुई। १८०७ ई. (सं० १८६४) कवि का जन्म काल प्रतीत होता है। -सर्वेक्षण ३५५ ६३४. बखतावर-हाथरस, जिला अलीगढ़ के । १८१७ ई० में उपस्थित ! - एक धार्मिक साधु । हिंदी छन्दों में सूनि सार (शून्य सार) नामक नास्तिक दर्शन सम्बन्धी एक ग्रंथ के रचयिता हैं। इसका सारांश यह है कि मनुष्य और ईश्वर सम्बन्धी सभी धारणाएँ भ्रान्त हैं और संसार में कुछ नहीं है। जिस समय हेस्टिग्स ने हायरस के किले को ढहाया, वहाँ के राजा बखतावर के आश्रयदाता दयाराम थे। देखिए, विलसन-'रेलिजस सेक्ट्स आफ द हिन्दूज, भाग १, पृष्ठ ३६० और मासा. द तासी भाग १, पृष्ठ १०२. ६३५. दलपतिराय-अहमदाबाद के ! जन्म ( ? उपस्थिति) १८२८ ई० । एक दूसरे ब्राह्मण वंशीधर श्री माली (सं० ६३६ ) के साथ इन्होंने भाषाभूषण (सं० ३७७ ) की अत्यंत सुन्दर टीका की। ६३६. बंसीधर स्त्रीमाली--अहमदाबाद के ! जन्म (१ उपस्थिति) १८२८ ई०। एक दूसरे ब्राह्मण दलपतराय (सं० ६३५) के साथ इन्होंने भाषा भूषण (सं० ३७७) की अत्यन्त सुन्दर टीका की। टिक-दलपतिराय श्री माल महाजन ( तेली) थे, बंशीधर मेदपाट ब्राह्मण थे। दोनों ने मिलकर भाषाभूषण की 'अलंकार रत्नाकर' नाम टीका लिखी । यह टीका सं० १७९८ में लिखी गई। अतः १८२८ ई० (सं० १८८५) इन अहमदावाद वासी कवियों का न तो उपस्थिति काल है, न जन्म काल ही। .. . . -सर्वेक्षण ३३३. ६३७. गुरदीन पाँड़े कवि-जन्म ( १ उपस्थिति )-१८३४ ई० । .. इन्होंने एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ 'वाक मनोहर पिंगल ( १८०३ ई० में लिखित ) की रचना की है। इसमें पिंगल ही नहीं है, अलंकार, घट ऋतु वर्णन, नखशिख आदि सभी हैं ।