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६४०. तुलसी राम—मीरापुर के अगरवाला। १८५४ ई० में उपस्थित।

उक्त वर्ष में इन्होंने नाभादास ( सं०५१) के भक्तमाल का उर्दू में अनुवाद किया। यह सं० ६३९ के पुत्र थे।
६४१. भानुनाथ झा—१८५० ई० में उपस्थित।

यह दरभङ्गा के महाराज महेश्वर सिंह के दरबार में थे। यह मैथिली में लिखते थे। देखिए जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल, जिल्द ५३, पृष्ठ ८६। इनका श्रेष्ठतम ग्रंथ प्रभावती हरण नाटक है, जो संस्कृत, प्राकृत और मैथिली में है।
६४२. हरखनाथ झा—दरभंगा के सोती ब्राह्मण। जन्म १८४७ ई०।

प्रथम कोटि के मैथिल कवि। महाराज दरभंगा के दरबार के बड़े पण्डित। यह अनेक मैथिली गीतों और एकाधिक नाटकों के रचयिता हैं, जो संस्कृत, प्राकृत और मैथिली में हैं। नाटकों में सबसे प्रसिद्ध 'उषा हरण' है। देखिए जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल, जिल्द ५३, पृ० ९३।

यह कई संस्कृत ग्रंथों के भी रचयिता हैं। यह मोदनाथ झा और गोपाल ठाकुर के शिष्य थे। बाद में बनारस कालेज में अध्ययन किया था। यह दरभंगा जिले के उजैन नामक स्थान पर पैदा हुए थे।
६४३. सिव परकास सिङ्घ—डुमराँव। जिला शाहाबाद के बाबू ; जन्म १८४४ ई०।

तुलसी कृत विनयपत्रिका की 'राम तत्व बोधिनी' नाम टीका के रचयिता।
६४४. कामता परसाद—असोथर, लखपुरा जिला फतहपुर के । जन्म १८५४ई०।

रस चन्द्रोदय। यह असोथर के भगवन्त राय खींची (सं० ३३३) के वंश के थे। यह भाषा साहित्य के पण्डित कहे जाते हैं। यह संस्कृत, प्राकृत, भाषा और फारसी में लिखते थे। शिव सिंह ने अपने सरोज में (पृष्ठ ५७) इनकी प्रतिमा का एक उदाहरण दिया है—यह चार चरणों का एक छन्द है, जिसका प्रथम चरण संस्कृत में, द्वितीय प्राकृत में, तृतीय भाषा में और चतुर्थ फ़ारसी में है। शिव सिंह ने इसी नाम के एक कवि के एक अच्छे नखशिख का उल्लेख किया है। संभवतः वह कवि भी यही हैं।

टि०—सरोज सर्वेक्षण के १३३ संख्यक लखपुरा वाले कामता प्रसाद ब्राह्मण थे और असोथर बाले ९७ संख्यक उन कामता प्रसाद से भिन्न थे जो खींची क्षत्रिय थे और भगवन्त राय के वंशज थे। ब्राह्मण क्षत्रिय की अभिन्नता संभव नहीं। १८५४ ई० (सं० १९११) उपस्थितिकार है।