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६९३ अजोध्या प्रसाद बाजपेयी,—सातनपुरवा, जिला रायबरेली वाले।

१८८३ ई० में जीवित।

संस्कृत और भाषा दोनों के महान विद्वान के रूप में यह कवि परम प्रसिद्ध है। इनकी कविताएँ सरल और असाधारण सौंदर्य से संयुक्त हैं। इनके ग्रंथों में से निम्नांकित का उल्लेख किया जा सकता हैं——
(१) छन्दानन्द।
(२) साहित्य सुधा सागर।
(३) राम कवित्तावली।

शिव सिंह का कहना है कि यह सामान्यतया महन्त रघुनाथदास ( संख्या ६९२) अथवा चन्दापुर में राजा जगमोहन सिंह (मिलाइए संख्या ७०९) के साथ रहते हैं। यह 'औध' नाम से लिखते है (मिलाइए सं० ६७४)।
६९४. गोकुल परसाद—लाला गोकुल परसाद, बलिरामपुर, जिला गोंडा के कायस्थ। १८८३ ई० में जीवित।

इन्होंने १८६८ ई० में, स्वर्गीय राजा दिगबिजै सिंह (सिंहासनारोहणकाल १८३६ ई.) के सम्मान में दिगबिजै भूषन ( मूल ग्रंथ में Dig संकेत से उल्लिखित) नामक काव्यसंग्रह, जिसमें १९२ कवियों की रचनाओं के चयन है, संकलित किया। यह अष्टजाम (रागकल्पद्रुम), चित्र कलाधर, दूती दर्पण और अन्य ग्रंथों के भी रचयिता हैं। यह 'व्रज' नाम से लिखते थे।

टि०—बलिरामपुर नहीं, बलरामपुर। रागकल्पद्रुम में किसी दूसरे अष्टबाम का उल्लेख है, व्रज के 'अष्टयाम का नहीं; क्योंकि यह सं० १९०० के बाद की रचना है और रागकल्पदुम सं० १९०० में प्रकाशित हो गया था।
६९५ जानकी परसा—जोहा बनकटी, जिला रायबरेली के भाँट । १८८३ ई० में जीवित।

यह ठाकुर प्रसाद (संख्या १५७०) के पुत्र है और फारसी तथा संस्कृत दोनों के अच्छे जानकार हैं। उर्दू में इन्होंने एक इतिहास 'शादनाम' नामक लिखा है। भाषा में यह (१) रघुवीर ध्यानावली, (२) राम नवरत्न, (३) भगवती विनय, (४) राम निवास रामायण, (५) रामानन्द विहार, (६) नीति विलास ग्रंथों के रचयिता हैं। यह कवि चित्रात्मकता और शान्त रस में बढ़ा-चढ़ा है। या तो यह अथवा दूसरे जानकी प्रसाद (सं० ५७७) इसी नाम के वह तीसरे कवि हैं जिनका उल्लेख शिव सिंह ने बिना तिथि दिए हुए किया है और जिसने सिंहराज से एक दुसाला माँगने के लिए एक चातुर्य पूर्ण छन्द,