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(aorostic) लिखा था, जिसके प्रथम तीन चरणों के प्रथमाक्षर के योग से 'दुसाला' शब्द बनता है।

टि०—यह भाँट नहीं थे, पँवार ठाकुर थे। ग्रियर्सन में संख्या ५७० पर ठाकुर प्रसाद त्रिपाठी का वर्णन है। यह उनके पुत्र नहीं हैं। इनके पिता का नाम भवानी सिंह था। इनके उर्दू ग्रन्थ का नाम शाहनामा है, न. कि 'शादनामा'। यह दुशाला मांगने वाले जानकी प्रसाद (सर्वेक्षण २६२) से: निश्चय ही भिन्न हैं।

——सर्वेक्षण २६१


६९६. महेस दत्त—धनौली जिला बाराबंकी वाले। १८८३ ई० में जीवित।

यह 'काव्य संग्रह' नामक एक उपयोगी संग्रह-ग्रन्थ के रचयिता हैं (मूल ग्रन्थ में Kab संकेत से उल्लिखित), जो संवत् १९३२ (१८७५ ई०) में छपा था। संभवतः वही जिनका उल्लेख शिव सिंह ने 'महेश कवि' नाम से किया है, जो १८०३ ई० में पैदा हुए थे।

टि०—घनौली नहीं, धनौली। सरोज के महेश कवि (सर्वेक्षण ६८४) इनसे भिन्न हैं। उनका नाम राजा शीतला बख्श बहादुर उपनाम महेश था। वह बस्ती के राजा थे।


६९७. नंद किसोर मिसर—उपनाम लेखराज; गँधौली जिला सीतापुर के रहनेवाले। १८८३ ई० में जीवित।

(१) रस रत्नाकर, (२) लघु भूषण अलंकार, (३) गंगा भूषण ग्रंथों के रचयिता। यह गँघौली गाँव के लंबरदार हैं। यही संभवतः वह और दो कवि भी हैं, जिनका उल्लेख शिव सिंह ने 'नंद कवि' और 'नंद किशोर कवि' नाम से किया है। अन्तिम 'राम कृष्ण गुन माल' के रचयिता हैं।

टि०—सरोज के नंद कवि (सर्वेक्षण ४२४) और नंद किशोर कवि (सर्वेक्षण ४२९) इन नंद किशोर से भिन्न हैं। इनकी अभिन्नता का कोई प्रमाण सुलभ नहीं। लेखराज का तो पूरा विवरण विनोद (१८१९) में दिया गया है।

——सर्वेक्षण ८२२


६९८. मातादीन मिसर—१८८३ ई० में जीवित।

इन्होंने शाहनामा का भाषानुवाद किया। संवत् १९३३ (१८७६ ई.) में इन्होंने 'कवि रत्नाकर' नामक संग्रह प्रकाशित कराया, जिसमें २० कवियों की कविताएँ संकलित हैं। (मूल ग्रंथ में Kab संकेत से उल्लिखित)।