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छंदोबद्ध टीका के रचयिता। इन्होंने अमर-कोश का भी भाषानुवाद

किया है। (१ राग कल्पद्रुम, मिलाइए सं० १७०,५६७, ५८९)।

टि०—यह वस्तुतः बिहार निवासी प्रसिद्ध टीकाकार हरिचरण दास (सर्वेक्षण ९९५) हैं। इन्होंने कविप्रियाभरण की रचना सं० १८३५ और चमत्कार चन्द्रिका की सं० १८३४ में की। सूदन ने इनका उल्लेख नहीं किया है। अमर कोश की टीका आजमगढ़ी हरजू (सर्वेक्षण ९८७) ने सं० १७९२ में की थी।
७६२. हितराम

टि०—हितराम ने सं० १७२२ में सिद्धांत समुद्र या श्री कृष्ण श्रुति विरदावली की रचना की थी।

—सर्वेक्षण १०००

५. कृष्णानन्द व्यासदेव (सं०६३८) के रागसागराद्भव रागकल्पद्रुम में उद्धृत, अतः १८४३ ई० के पूर्व स्थित कवि' :‐——
७६३. छबीले कवि—ब्रज के।

टि०—विनोद (३३२) के अनुसार छबीले का रचनाकाल सं० १७०० है।

—सर्वेक्षण २४८


७६४. जगन्नाथ दास—यह संभवतः वही हैं, जिनका उल्लेख शिवसिंह ने 'जगन्नाथ कवि, प्राचीन' नाम से किया है। देखिए सं०६०१

टि०—जगन्नाथदास (सर्वेक्षण २८६) की जगन्नाथ कविराय छाप थी। यह अकबरी दरबार से सम्बन्धित थे। यह संगीतज्ञ कवि थे। यह उन जगन्नाथ कवि (१) प्राचीन (सर्वेक्षण २८४) से भिन्न हैं, जिनका रचनाकाल सं० १७७६ है।
७६५. जुगराज कवि—यह कुछ 'बहुत ही सरस' कविताओं के रचयिता कहे जाते हैं।

टि०—सरोज में (सर्वेक्षण २५८) इस कवि के सम्बन्ध में यह उल्लेख नहीं है कि इस कवि की रचना राग कल्पद्रुम में है।
७६६. धोंधेदास—ब्रजवासी।

टि०—विनोद के अनुसार (संख्या ३३६) इनका रचनाकाल सं० १७०० है।

—सर्वेक्षण ३८६


१. उक्त ग्रन्थ की भूमिका में उल्लिखित और इस ग्रन्थ में संख्या ६३८ पर उद्धृत अन्य अनेक नामों को भी देखिए।