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७७४. रसिकदास—ब्रजवासी।

टि०—हिन्दी साहित्य में चार रसिकदास हुए हैं।

(१) रसिकदास—हित हरिवंश के राधावल्लभीय संप्रदाय के। इनका जन्मकार सं० १७४४-५१ है।

(२) रसिकदास—स्वामी हरिदास के टट्टी संप्रदाय के। नरहरिदास के शिष्य।

(३) रसिकदास—गोस्वामी हरिराय जी। इनकी अन्य छापें रसिक प्रीतम, रसिक शिरोमणि और रसिक राय भी हैं। वल्लभाचार्य के वंशज और वल्लभ संप्रदाय के। जन्म सं० १६४७, मृत्यु सं० १७७२।

(४) रसिकदास गोपिकालंकार जी महाराज—गोपिकाभष्ट के नाम से भी ख्यात। वल्लभ संप्रदाय के गोस्वामी द्वारिकेश जी के पुत्र।

—(सर्वेक्षण ७४७)


७७५. रामराय, राठौर।

यह राजा खेमपाल राठौर के पुत्र थे।१

टि०—भक्तमाल छप्पय ११९ में रामरैन या रामगइ राठौर हैं। सरोज में (सर्वेक्षण ७३१) विवरण इनका दिया गया है, उदाहरण रामराइ सारस्वत ब्राह्मण का। कहा नहीं जा सकता रामराइ राठौर कवि थे भी अथवा नहीं। सरोज के आधार पर ग्रियर्सन में इन्हें कवि स्वीकार किया गया है। इनका समय सं० १६४९ के आसपास होना चाहिए।
७७६. लच्छनदास कवि

मैंने ब्रजभाषा में लिखित इनके नाम की छाप वाली एक कविता मिथिला में पाई है।

टि०—सरोज (सर्वेक्षण ८१३) में यह उल्लेख नहीं है कि लक्ष्मणदास की कविता राग कल्पद्रुम में है।
७७७. लछमन सरनदास

टि०—इस कवि का अस्तित्व ही नहीं है। सरोज में उद्धृत पद में 'दास सरन लछिमन सुत भूप' का अर्थ है—यह दास लछिमन सुत अर्थात् बल्लभाचार्य की शरण में है।

—सर्वेक्षण ८१८


१. यह विवरण ७७६ संख्यक लच्छनदास के विवरण के नीचे प्रमाद से छप गया है।

—अनुवादक