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पटियाला नरेश महाराज नरेन्द्र सिंह के दरवार से सम्बन्धित थे। इनका रचनाकार सं० १८८५-१९०७ वि० है।

—सर्वेक्षण १६८


८१९. गोपाल सिङ्घ-व्रजवासी। इन्होंने 'तुलसी शब्दार्थ प्रकाश' लिखा है। इसमें अष्टछाप का वर्णन है। देखिए संख्या ३५

टि०—इस कवि के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता। हाँ, एक जयगोपाल सिंह अवश्य हुए हैं, इन्होंने भी तुलसी शब्दार्थ प्रकाश नाम ग्रंथ सं० १८७४ में लिखा था, पर इस तुलसी शब्दार्थ प्रकाश का अष्टछाप से कोई सम्बन्ध नहीं। यह विविध ज्ञान सम्बन्धी ग्रंथ है। यह जयगोपाल सिंह वनारस के दारानगर मुहल्ले के रहने वाले थे।

—सर्वेक्षण २०९


८२०. गोविन्द राय—राजपूताना के वन्दीजन। यह हाड़ावती नामक ग्रंथ के रचयिता हैं। यह हाड़ावंश का इतिहास है। (मिलाइए, टाड का राजस्थान भाग २, पृष्ठ ४५४; कलकत्ता संस्करण भाग २, पृष्ठ ४९९)।

टि०—विनोद (१०८) में इन गोविन्दराय का जन्मकाल सं० १६०९ दिया गया है।
८२१. घासी भट्ट
८२२, चक पानि—मैथिल कवि। (देखिए जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बङ्गाल, जिल्द ५३, पृष्ठ ९१)।
८२३. चतुरभुज—मैथिल कवि (देखिए जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बङ्गाल, जिल्द ५३, पृष्ठ ८७)।
८२४. चोखे कवि—शिव सिंह कहते हैं कि इनकी कविताएँ 'चोखी' हैं।
८२५. छत्तन कवि
८२६. जगनेस कवि
८२७ जनारदन भट्ट—इन्होंने 'वैद्यरत्न' नामक औषधि का ग्रंथ लिखा है।

टि०—वैद्य रत्न का रचनाकाल सं० १७४९ माघ सुदी ६ है।

—सर्वेक्षण २७९


८२८. जयानंद—यह मैथिल कवि थे, जाति के करन कायस्थ थे। (देखिए जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल, जिल्द ५३, पृष्ठ ८५)
८२९. जुगुल परसाद चौबे—इन्होंने एक अच्छी दोहावली लिखी है।
८३०. जै क्रिशन कवि—यह कवि भवानीदास के पुत्र थे। मिलाइए संख्या ६८३। इन्होंने छंद सार नामक पिंगल ग्रंथ रचा है।