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टि०—इन्होंने सं० १७२१ में श्रृंङ्गार शतक की रचना की। यह भूषण के आश्रयदाता थे।

—सर्वेक्षण ३७९


८४४. द्विजनंद कवि
८४५, नजामी—बैसवाड़ी बोली में लिखित, इनके नाम की छाप से युक्त, एक छोटी कविता मैंने मिथिला में सुनकर संकलित की है। इसके अतिरिक्त मुझे इस कवि के संबंध में और कुछ नहीं मालूम।
८४६. नंदराम कवि—शांत रस के कवि।

टि०—इन्होंने सं० १७४४ में कलियुग वर्णन संबंधी नंदराम पचीसी नाम ग्रंथ लिखा।

—सर्वेक्षण ४२७


८४७. नंदीपति—मैथिल कवि, देखिए जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल, जिल्द ५३, पृष्ठ ७९।
८४८. नबी कवि—श्रृंगार संग्रह में भी। एक सुंदर नखशिख के रचयिता।
८४९, नवल किशोर कवि—कोई विवरण नहीं। यह संभवतः 'नवल' से प्रारंभ होने वाले अन्य अनेक कवियों में से एक हैं और संभवतः वही हैं, जिनका उल्लेख शिवसिंह ने 'नवल कवि' के नाम से किया है और कोई तिथि नहीं दी है।

टि०—दोनों कवि भिन्न-भिन्न हैं।

—सर्वेक्षण ४३७, ४३८


८५०. नाथ—श्रृंगार संग्रह में भी। कई कवि जैसे काशीनाथ (सं० १३९), उदयनाथ (सं० ३३४), शिवनाथ (सं० ६३२) आदि नाथ छाप से लिखते हैं, जिसने बड़ी गड़बड़ी उत्पन्न कर दी है। मिलाइए संख्या ६८, १४७, १६२, ४४०, ६३२।
८५१. नेही कवि

टि०—दलपतराय वंशीधर के 'अलंकार रत्नाकर' में इनकी कविता उदाहृत है, अतः यह सं० १७९८ के पूर्व या आसपास उपस्थित थे।

—सर्वेक्षण ३९२


८५२. नैन कवि
८५३. पखाने कवि

टि०—इस नाम का कोई कवि नहीं हुआ। राय शिवदास की कविता में लोकोक्ति के अर्थ में 'पखाने' शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसे कवि छाप समझ