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ग्रियर्सन के ग्रन्थ का महत्व

किन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि ग्रियर्सन का यह ग्रन्थ पूर्णतया सरोज का अनुवाद है। इतना विस्तार यह दिखलाने के लिए किया गया कि हिन्दी साहित्य के इतिहास के सहायक सूत्रों में सरोज का महत्व सर्वाधिक है। ग्रियर्सन की अनेक ऐसी विशेषतायें हैं, जिन्होंने बाद में लिखे जाने वाले हिन्दी साहित्य के इतिहासों को पर्याप्त प्रभावित किया है:-

( १ ) यह ग्रन्थ हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास है। इसमें पहली बार कवियों का विवरण काल-क्रमानुसार दिया गया है। इसके पूर्व लिखित सरोज एवं तासी में कवियों का विवरण वर्णानुक्रम से है।

( २ ) इस ग्रन्थ में हिन्दी साहित्य के इतिहास के विभिन्न काल-विभाग भी किये गये हैं। विनोद में बहुत कुछ इन्हीं काल को स्वीकार कर लिया गया है।

( ३ ) प्रत्येक काल की तो नहीं, कुछ कालों की सामान्य प्रवृत्तियाँ भी दी गई हैं, यद्यपि यह विवरण अत्यन्त संक्षिप्त है।

( ४ ) प्रत्येक कवि को एक एक अंक दिया गया है। बड़ी आसानी से किसी भी कवि को उसके नियत अंक पर देखा जा सकता हैं। इसी पद्धति का अनुकरण बाद में विनोद में भी किया गया। सरोज में भी किसी अंश तक यह पद्धति है, यहाँ एक एक वर्ष के कवियों की क़म-संख्या अलग-अलग दी गई है।

( ५ ) सरोज में कवियों के विवरण, अत्यन्त संक्षिप्त हैं। इस ग्रन्थ में भी यही बात है। पर निम्नांकित १८ कवियों का विवरण पर्याप्त विस्तार से दिया गया हैः--

( १ ) चन्द बरदाई, ( २ ) जगनिक, ( ३ ) सारंगधर, ( ४ ) कबीरदास, ( ५ ) विद्यापति ठाकुर, ( ६ ) मलिक मुहम्मद जायसी, ( ७ ) बल्लभाचार्य, ( ८ ) विट्ठल नाथ, ( ९ ) सूरदास, ( १० ) नाभादास, ( ११ ) बीरबल, ( १२ ) तुलसीदास, ( १३ ) बिहारीलाल, ( १४ ) सरदार, ( १५ ) हरिश्चन्द्र, ( १६ ) लल्लू जी लाल, ( १७ ) कृष्णानन्द व्यासदेव, ( १८ ) राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द।

इनमें से जायसी और तुलसी पर तो अलग अलग अध्याय ही हैं। सम्भवतः इन्हीं अध्यायों ने आचार्य शक्ल का विशेष ध्यान इन कवियों की ओर आकृष्ट किया।