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बिहारी, प्रत्येक अपनी विभिन्न बोलियों एवं उपबोलियों के सहित। मैं यहाँ एक परित्याग का भी उल्लेख स-खेद कर देना चाहता हूँ। अगणित एवं अज्ञात कवियों द्वारा विरचित स्वतंत्र महाकाव्यों एवं ग्राम गीतों (जैसे कजरी, जँतसार और इसी प्रकार के अन्य भी) को, जो संपूर्ण उत्तरी भारत में प्रचलित हैं, मैंने इसमें सम्मिलित करने से अपने को रोका है। ये लोगों से जबानी सुनकर वहीं संकलित किए जा सकते हैं; और जहाँ तक मैं जानता हूँ, यह संग्रह-कार्य ढंग से और केवल बिहार में किया गया है। अतः मैंने कुछ सोच बिचार के पश्चात् इस ग्रंथ में इनका एकदम उल्लेख न करने का पूर्ण निश्चय कर लिया; क्योंकि इनकी चर्चा का कोई भी प्रयास अपूर्ण एवं भ्रामक ही होता।

इस ग्रंथ में स्वीकृत विषय-क्रम का सिद्धान्त भूमिका में स्पष्ट किया गया है। अनेक कवियों के उल्लेख तो केवल नाम हैं और कुछ नहीं। इनको मैंने पुस्तक को यथासंभव पूर्ण बनाने के लिए सम्मिलित कर लिया है। जहाँ कोई सूचना मुझे मिली हैं, मैंने संबद्ध लेखक के नाम के आगे अंकित कर दिया है और मेरा विश्वास है कि कुछ स्थलों पर मैं यूरोपीय विद्वानों के सामने ऐसी सूचनाएँ प्रस्तुत कर सका हूँ, जो आज तक उनके सामने कभी भी नहीं रखी गई। उदाहरण के लिए मैं पाठकों से सूरदास (संख्या ३७) और तुलसीदास (स० १२८) पर लिखित लेखों की ओर संकेत करूँगा। मैं इस बात का दावा नहीं करता कि मैंने इन पृष्ठों में उल्लिखित विशाल साहित्य को पूर्णतया अथवा मुख्यतया पढ़ लिया है, किन्तु मैंने प्रायः उन सभी नौ सौ बावन लेखकों की कृतियों के नमूने पड़े हैं, जिनके विवरण, इस ग्रंथ में हैं। मैं यह भी दावा नहीं करता कि जो कुछ मैंने पढ़ा है, वह सब का सब समझा भी है, क्योंकि अनेक उदाहरण तो इतने कठिन हैं कि बिना मौखिक अथवा लिखित टीका की सहायता के इनकी व्याख्या करने का प्रयत्न ही व्यर्थ है। विषये अत्यन्त विस्तृत है और हमारे ज्ञान की वर्तमान स्थिति इतनी सीमित है। कि ऐसे कार्य का प्रयत्न भी नहीं किया जा सकता। अतः मैं इसको एक ऐसे सामग्री-संग्रह के रूप में ही, भेंट कर रहा हूँ जो नींव का काम दे सके और जिसपर दूसरे लोग, जो मुझसे अधिक भाग्यशाली हैं और जिनके पास बंगाल के एक जिला कलेक्टर की अपेक्षा अधिक अवकाश है, निर्माण कर सकें।

भाषा शब्दों की वर्तनी के सम्बन्ध में मैं उस पद्धति पर दृढ़ रहा हूँ, जिसका हमने—डा० हार्नल और मैने—अपने 'कंपेरेटिव डिक्शनरी आफ़ द बिहारी लैंग्वेज' में अनुसरण किया है; विशेष विवरण के लिए पाठक उसे देखें। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक शब्द को कड़ाई के साथ उसी रूप में