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नखशिख, नायक भेद और नायिका भेद आदि शब्दों की व्याख्या संख्या ८७ की पाद-टिप्पणी में मिलेगी।

जब किसी ग्रंथ के प्रसंग में 'सामयिक' शब्द का प्रयोग हुआ है, मैंने बिना किसी हिचक के Occasional द्वारा उसे अनूदित किया है। चेतावनी का अनुवाद मैंने didactic किया है। Emblematic पद्यों ( हिन्दी में धान दृष्टकूट) से मेरा अभिप्राय उन कल्पना प्रजटिल सूक्तियों से है जिनसे संस्कृत के वे [ पश्चिमी ] विद्वान् परिचित हैं, जिन्होंने नलोदय और किरातार्जुनीये का अध्ययन किया है।

ब. विषय-न्यास का सिद्धान्त

सामग्री को यथासंभव कालक्रमानुसार प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। यह सर्वत्र सरल नहीं रहा है, और कतिपय स्थलों पर तो यह असंभव सिद्ध हुआ है। अतएव वे कवि जिन के समय मैं किसी भी प्रकार नहीं स्थिर कर सका, अन्तिम अध्याय में वर्णानुक्रम से एक साथ दे दिए गए हैं। जब ग्रंथ छपने लगा, मुझे अचानक कुछ कवियों की अनुमित तिथियाँ मिल गई, पर तब इतना विलम्ब हो गया था कि इन्हें उनके उपयुक्त स्थान पर सन्निविष्ट नहीं किया जा सका। अतः वे अन्तिम अध्याय ही में पड़े रह गए, किन्तु अशुद्धि निवारणार्थ मैंने परिशिष्ट में उनकी ओर ध्यान आकृष्ट किया है।

ग्रंथ अध्यायों में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय सामान्यतया एक काल का सूचक है। भारतीय भाषा काव्य के स्वर्णयुग १६ वीं एवं १७ वीं शती पर मलिक मुहम्मद की प्रेम कविता से प्रारम्भ कर के, ब्रज के कृष्ण भक्त कवियों तुलसीदास के ग्रंथों ( जिन पर अलग से एक विशिष्ट अध्याय ही लिखा गया हैं ) और केशवदास द्वारा स्थापित कवियों के रीति संप्रदाय को सम्मिलित करके कुल ६ अध्याय हैं, जो पूर्णतया समय की दृष्टि से नहीं विभक्त हैं, बल्कि कवियों के विशेष वर्गों की दृष्टि से बँटे हैं।

प्रत्येक अध्याय के अन्त में छोटे अक्षरों में परिशिष्ट दिया गया है, जिनमें उस युग अथवा उस वर्ग के छोटे कवियों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इन परिशिष्टों में संकलित अधिकांश रचनाओं के लिए मैं शिव सिंह सरोज का आभारी हूँ।

स. हिंदुस्तान के भाषा साहित्य का संक्षिप्त विवरण

जहाँ तक मुझे सूचना प्राप्त है हिन्दुस्तान का प्राचीनतम भाषा साहित्य राजपूताने के चारणों द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक वृत्तांत हैं। प्रथम चारण जिसके