पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(५०)

इन अभिलेखों की रक्षा के लिए पहुँचेगा और उन सबको अँगरेजी अनुवाद सहित प्रकाशित करा देगा?

इन चारण इतिहासकारों से हटकर, हम गंगा की घाटी में भाषा साहित्य की ओर पुनः चलें, जो १५ वीं शती के प्रारम्भ में वैष्णव धर्म के विकास के साथ साथ विकसित हो रहा था। रामोपासना को सर्वप्रिय बनाने वाले रामानंद १४०० ई० के आसपास विद्यमान थे। उनसे भी बड़े उनके प्रसिद्ध शिष्य कबीर थे, जो एक सम्प्रदाय की स्थापना में सफल हुए, जो आज भी जीवित है, और जिन्होंने हिन्दू और इसलाम धर्मों की प्रमुख विशेषताओं का समन्वय किया था। यहाँ हम पहली बार विचारों को उस महान् उदारता का स्पर्श करते हैं, जिसका मूल सिद्धान्त रामानन्द ने प्रतिपादित किया था और जो उनके सभी अनुयायियों के सिद्धान्तों में प्रतीयमान हो रही है, तथा जो दो शतियों के अनन्तर तुलसीदास के उच्च उपदेशों में अपनी वास्तविक उच्चता को प्राप्त हुई। ईश्वर रूप में अवध के राजकुमार राम की पूजा, पत्नीत्व की पूर्ण प्रतिमा सीता की प्रेममयी पति भक्ति और मातृत्व की मूर्ति कौशल्या स्वाभाविक ढङ्ग से क्रिश्चियन चर्च की उपासना पद्धति के सर्वोत्तम रूप में विकसित हो गए हैं। यह एक ऐसा सिद्धान्त है जो उस सदाशिव स्वरूप के सामने मानव को अनन्त अधमताओं का प्रकथन करता है; साथ ही उसके बनाए हुए प्रत्येक पदार्थ में अच्छाई देखता है; किसी धर्म अथवा दर्शन-पद्धति की निंदा नहीं करता; और शिक्षा देता है कि तुम अपने प्रभु, अपने देवता को सम्पूर्ण हृदय से, सम्पूर्ण आत्मा से, सम्पूर्ण शक्ति से और सम्पूर्ण मन से प्यार करो तथा अपने प्रतिवासी को उतना ही प्यार करो जितना स्वयं अपने को करते हो।१

वैष्णव धर्म की दूसरी बड़ी शाखा राधाकृष्ण के परस्पर प्रेम की रहस्यमयी व्याख्या पर निर्भर है। इसका भाग्य रामकाव्य से अत्यंत भिन्न हैं। स्वतः सुन्दर, अनेक ईसाई धर्माचार्यों के उपदेशों के ही समान, पश्चिम में मीराबाई (उपस्थित १४२० ई०) और पूर्व में विद्यापति ठाकुर (उपस्थित १४०० ई०) के इंद्रजाल-मधुर काव्य से और भी रमणीय बन गई इसकी भावोच्छ्वासपूर्ण उपासना, जिसका आंतर अर्थ साधारण शिष्यजनों के लिए अत्यधिक सांकेतिक


१. श्री ग्राउस ने (उदाहरण के लिए रामायण बालकांड दोहा २४ की टिप्पणी में) रामचरित के अपने अनुवाद में क्रिश्चियन चर्च और तुलसीदास के सिद्धांतों को समता की कई बातें इङ्गित की है। हमारे चर्च के मंत्रों में से अनेक ऐसे हैं जो इस महाकवि के द्वारा रचित पद्यांशों के अक्षरश: अनुवाद हो सकते हैं।