पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/६६

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प्रसिद्ध थे, केशवदास और चिंतामणि त्रिपाठी द्वारा छोड़ी काव्यधारा के परिच्छद को भलीभाँति और योग्यता पूर्वक धारण किया। विक्रमसाहि ने बिहारी लाल की सुप्रसिद्ध सतसई के अनुकरण पर एक मौलिक सतसई लिखी ।

इसके विपरीत बनारस में मुद्रण यंत्रों ने विद्वानों के लिए नए सामाजिक [ श्रोताओं, पाठकों ] की सृष्टि कर दी और इस प्रकार उत्पन्न माँग की पूर्ति के लिए, अनेक अत्यंत महत्व की कृतियाँ प्रस्तुत की गई । इनमें मुख्य है महाभारत का गोकुलनाथ कृत भाषानुवाद । एक नए ढंग के आलोचना लेखक भी सामने आए, जिनमें सुंदरीतिलक एवं अन्य अनेक सुंदर ग्रंथों के रचयिता हरिश्चंद श्रेष्ठतम हैं, जब कि राजा शिवप्रसाद में शिक्षा के आदर्श ने अपना एक प्रबुद्ध मित्र और अच्छी पाठ्य पुस्तकों के लिखने के कठिन कार्य में एक पथ-प्रदर्शक पाया । प्रेमसागर के रचयिता लल्लू जी लाल की चर्चा पहले की जा चुकी है। कलकतिया सभ्यता की एक अन्य और बिलकुल दूसरे ढंग की सृष्टि कृष्णानन्द व्यासदेव कृत विशाल काव्यसंग्रह रागसागरोद्भव रागकल्पद्रुम है, जो अधिक प्रसिद्ध संस्कृत शब्द कोष “शब्द कल्पद्रुम' के अनुकरण पर प्रस्तुत किया गया था ।

इसी युग ने हिन्दी नाटकों का उदय देखा,[१]जो अब भली-भाँति प्रतिष्ठित हो गया है और जो निकट भविष्य में महत्वपूर्ण सुन्दर रचनाओं की प्राप्ति की आशा दिलाता है।

इस संक्षिप्त विवरण में गदर के बाद के साहित्य की चर्चा नहीं की जायगी[२]। एक संक्षिप्त और अपूर्ण विवरण ग्रन्थ के अन्तर्गत मिलेगा । यह भी ध्यान देने की बात है कि प्रमुख युगों के साहित्य का और विस्तृत विश्लेषण सातवें से ग्यारहवें अध्यायों की भूमिकाओं में मिलेगा । इस लेख में जो कुछ भी प्रयास किया गया है वह हिन्दुस्तान के भाषा साहित्य के इतिहास में अनल्प गौरवपूर्ण अतीत की अत्यन्त प्रमुख विशेषताओं के दिग्दर्शन मात्र के उद्देश से।

(द) चित्र परिचय[३]

मुख पृष्ठ पर दिया गया चित्र कौशल्या के घर में बालक राम का है। मैं इस चित्र के लिए राजा शिवप्रसाद सी॰ एस॰ आई॰ की उदारता का आभारी


  1. ग्रंथ के अंतर्गत संख्या ७०६ भी देखिए।
  2. ऊपर वर्णित हरिश्चद एवं सारा नाटक-साहित्य दर के बाद के हैं।-अनुवादक।
  3. इस अनुवाद ग्रन्थ में चित्र और प्लेट नहीं दिये जा रहे हैं।-अनुवादक