पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/७

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मैंने ग्रन्थ को पहले आदि से अन्त तक पढ़कर अनुवाद किया हो, ऐसा नहीं है। एक-एक पंक्ति पढ़ता जाता था, तुरन्त उसका हिन्दी अनुवाद करता जाता था। यह अनुवाद-कार्य एक सिलसिले से नहीं हुआ। छोटे-छोटे अध्यायों का अनुवाद पहले हुआ, बड़ों का बाद में।

अनुवाद कार्य कुल आठ दिनों में समाप्त हुआ। वे बड़े ही व्यस्त दिन थे। प्रतिदिन लगभग चार बजे उठता और अनुवाद करने बैठ जाता। यह कार्य लगभग छह साढ़े-छह तक चलता। तदुपरांत नित्य कार्य से निवृत्त हो भाई मंगलाप्रसाद के साथ मणिकर्णिका घाट पर गंगा स्नान करने जाता। कभी विश्वनाथ जी का भी दर्शन कर लेता, कभी नहीं। लौटकर वापस आते-आते आठ बज जाते। आते ही कुछ नाश्ता करके फिर काम पर जुट जाता। लगभग बारह बजे तक अनुवाद कार्य करता। तदुपरांत भोजन करने के लिए निकलता। भोजनोपरान्त पुनः अनुवाद कार्य प्रारम्भ होता। सन्ध्या होते-होते फिर घर से निकलता। दशाश्वमेध घाट की ओर चल पड़ता। रास्ते में परिचित मित्रों से आकस्मिक-मिलन लाभ करता, पावन गंगाजल से पूत होता हुआ एक घण्टे के भीतर पुनः लौट आता और अपने काम पर जुट जाता। रात में लगभग नौ-दस बजे पुनः भोजनार्थ निकलत। वापस आने पर 'आज' उलटता-पलटता सो जाता। यदि रात में कभी नींद खुल जाती और बुलाने पर भी न आती, तो उस अनिद्रा का भी सदुपयोग मैं करता था। ऐसी ही एक रात में मैंने ब्रजभाषा में ११ कवित्त-सवैये लिखे थे, जिन्हें आजमगढ़ के मेरे मित्रों ने बहुत पसन्द किया था। ऐसे थे अनुवाद के वे व्यस्त आठ दिन। पर 'वे कुछ दिन कितने सुन्दर थे।'

'सरोज सर्वेक्षण' से इसी जुलाई में अवकाश मिला है। २७ अगस्त से प्रस्तुत ग्रन्थ में हाथ लगाया। अनुवाद तैयार ही था। टिप्पणियाँ लगाने भर की देर थी। मैंने इस ग्रंथ की प्रेस-प्रति उसी दिन से प्रस्तुत करनी प्रारम्भ की। अनुवाद को जहाँ-तहाँ सँभाल दिया है। कवियों के सम्बन्ध में ग्रियर्सन के जो कथन असत्य सिद्ध हो चुके हैं, उनके विवरण के ठीक नीचे दूसरे