पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/७२

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आज इस मान्यता' की स्थापना हो गई है कि यह आधुनिक काल का एक जाल है । इनका प्रमुख ग्रन्थ प्रख्यात पृथ्वीराज रायसा (रागकल्पद्रुम) या इनके संरक्षक का जीवन चरित्र है । टाड के अनुसार जिस समय चन्द्र बरदाई रचना कर रहा था, रासो उस समय का सामान्य इतिहास है; इसमें ६९ समय हैं, जिनमें कुल १ लाख छन्द हैं; इनमें से टाड़ ने ३० हजार छन्दों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है । ( हिन्दी से अंग्रेजी में ) यह अनुवाद निश्चय ही किसी भी अन्य यूरोपियन द्वारा किए गए ऐसे अनुवाद से परिमाण में अधिक है । चन्द और पृथ्वीराज दोनों ११९३ ई० में मुसलमानों से युद्ध करते हुए मारे गए थे। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, इनके वंशजों में से एक कवि सूरदास थे और दूसरे वेशधर कवि सारङ्गधर ( सं० ८) थे, जिन्होंने, कहा जाता है, हमीर रायसा और हमीर काव्य3 लिखे थे । पृथ्वीराज रायसा का एक अंश बीम्स द्वारा संपादित हुआ है। इसके एक अन्य अंश का संपादन एवं अंग्रेजी अनुवाद हार्नली ने किया है। इस कार्य की अत्यधिक कठिनता ने दोनों विद्वानों के अधिक प्रगति करने में अवरोध डाला हैं । पण्डित मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या ने अभी हाल इस सम्पूर्ण ग्रन्थ के एक आलोचनात्मक संस्करण को संपादन प्रारम्भ किया है, जिसकी प्रथम दो किरते प्रकाशित भी हो चुकी हैं । ( मेडिकल हाल प्रेस, बनारस, १८८७ ) ।.इसका महोबा खण्ड, जो संभवतः जाली है अथवा कम से कम चन्द का नहीं है, कई बार हिन्दी में अनूदित हो चुका है। इसमें प्रसिद्ध वीर आल्हा और ऊदल ( या पूर्वी हिन्दुस्तान की परम्परा के अनुसार आल्हा और रूदल ) का वर्णन है, और वह हिन्दी रूपान्तर जिससे मेरा सर्वाधिक परिचय है। ( अनुवाद की प्रामाणिकता के सम्बन्ध में कुछ भी कहने की स्थिति में मैं

नहीं हूँ ) फ़तेह गढ़ के ठाकुरदास का है, जो आल्ह खण्ड नाम से प्रस्तुत


१. देखिए, जनल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल, १८८६ ई०, ( पृष्ठ ५ ) में प्रकाशित कृविराज श्यामलदास का चंदबरदाई के महाकाव्य पृथ्वीराज रासो की प्राचीनता,

प्रामाणिकता और वास्तविकता” शीर्धक लेख, जिसमें चंद पर आक्रमण किया गया है। और पण्डित मोहन लाल विष्णु लाल पंड्या लिखित “चंद वरदाई कृत पृथ्वीराज रासो की संरक्षा” ( बनारस मेडिकल हाल प्रेस, १८८७), जो कि उक्त लेख का प्रत्युत्तर है।

२. टाड भाग १, पृष्ठ २५४; कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ठ २७३

३. टोड भाग ३, पृष्ठ ४५३ टि०; कलकत्ता संस्करण भग ३, पृष्ठ ४६७ टि० ।

४.. महोवा खण्ड के एक प्रकरण के अंग्रेजी अनुवाद के लिए देखिए टाढ, भाग १ १४ ६१४

.और आगे; कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ठ ६४८ और आगे।