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के महोबा खंड का अनुवाद नहीं है, यह परंपरा-प्राप्त, लोक-प्रचलित अल्हखंड का मुद्रित रूप मात्र है। जैसा कि हम केदार (स० ४) के प्रकरण में देख चुके हैं 'जयचंद प्रकाश' केदार भट्ट की रचना है, चन्द की नहीं। रासो के अतिरिक्त चन्द की और किसी कृति का पता नहीं।


७. जगनिक—जगनिक या जगनायक बंदीजन, महोबा, बुन्देलखण्ड, ११९१ ई० में उपस्थित।

जगनिक चंद के समकालीन थे। मैं निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि मैंने इस कवि की कोई रचना देखी है। यह महोबा बुन्देलखण्ड के राजा परमाल (परमर्दि)) के दरबार में थे और इन्होंने परमाल और पृथ्वीराज के युद्धों का वर्णन किया है। जनश्रुति के अनुसार, जो असम्भव भी नहीं, आल्ह खण्ड, जिसके अनेक रूपान्तर सुलभ हैं और जो कभी कभी चंद के महाकाव्य को एक प्रक्षिप्त खण्ड भी माना जाता है, मूलतः इसी कवि की रचना है। जहाँ तक मेरी अभिज्ञता है, आल्हखण्ड मौखिक रूप में ही प्रचलित है और सम्पूर्ण भारतवर्ष में पेशेवर अल्हइतों द्वारा गाया जाता है। जैसा कि सहज ही सोचा जा सकता है, ये सभी प्राप्त रूप भाषा की दृष्टि से एक दूसरे से पर्याप्त भिन्न हैं और गानेवाले की अपनी बोलचाल के अनुरूप आधुनिक हो गए हैं। आल्हखण्ड के पूर्ण विवरण के लिए 'इंडियन ऐंटीक्वैरी' जिल्द १५, पृष्ठ २०९, २५५ देखिए। पृथ्वीराज एवं परमाल के युद्धों में आल्हा ने जो भाग लिया, उसके विवरण के लिए 'आरकेआलोजिकल सर्वे आफ़ इण्डिया' की रिपोर्ट ७, पृष्ठ १३-२० देखिए।

चन्द (सं० ६) के विवरण में महोत्रा खण्ड का उल्लेख पहिले ही किया जा चुका है। इसमें और काव्य के अन्य पश्चिमी परिवर्तित संरकरणों में इसके वीरों का नाम आल्हा और ऊदल या ऊदन दिया गया है। ऊदल या ऊदन उदय सिंह का संक्षिप्त रूप है। पूर्वी संस्करणों में इनके नाम आल्हा और रूदल हैं। पश्चिमी संस्करण के दो विभिन्न पाठ मुद्रित हो चुके हैं, एक का सम्पादन भटपुरिया के चौधरी घासीराम ने किया है और दूसरे का सर (तब श्री) सी० इलियट की देख रेख में फतेहपुर के ठाकुरदास ने।इसका उल्लेख पहिले किया जा चुका है। ठाकुरदास ने कन्नौज के तीन निरक्षर, पेशेवर अल्हइतों से आल्हा सुनकर लिख लिया था। इनमें से एक जोशी, एक तेली और एक ब्राह्मण था। कुछ अपने, कुछ उधार ली हुई अन्य विभिन्न हस्तलिखित प्रतियों के उद्धरणों और इन तीनों के सुने पाठों के जोड़-तोड़ से