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ठाकुरदास ने अपनी संस्करण प्रस्तुत किया था, ऐसा मेरा विश्वास है। इस प्रकार यह एक खिचड़ी रचना है। इस संस्करण के कुछ अंश का वैलड छंद में अंग्रेजी अनुवाद श्री वाटरफील्ड ने किया था, जो "कलकटा रिव्यू" में "द नाइन लाख चैन"( नौलखा हार ) या "द मारू फ्यूड" ( मारू युद्ध ) नाम से जिल्द ६१, ६२ और ६३ में छपा था। पूर्वी संस्करण केवल घुमक्कड़ गवैयों की जबान पर है और यह प्रायः बिहारी भाषा की भोजपुरी बोली में अभिव्यक्त है। पूर्वी परम्परा के अनुसार यह कविता मूलतः जगनिक द्वारा बुन्देलखण्डी बोली में लिखी गई थी। श्री विंसेंट स्मिथ ने इस बोली में लिखी कई रचनाएँ मुझे भेंट की हैं। जिनमें से अनेक किसी बड़े ग्रन्थ की कलाएँ प्रतीत होती हैं। इनमें उपनायक ऊदल कहा गया है।

टि०–जगनिक निःसंदेह परमाल के दरबारी एवं चन्द के सम-सामयिक थे। पर इनकी कृति जनवाणी में घुल-मिलकर अपनी मूल रूप खो चुकी है। आज कोई भी रचना इनकी वास्तविक कृति के रूप में नहीं प्रस्तुत की। जा सकती।

-सर्वेक्षण ३०६

८. सारंगधर कवि--बन्दीजन, रणथंभौर निवासी, १३६३ ई० में उपस्थित।

इसके बाद डेढ़ शताब्दियों का सूनापन है। फिर १३६३ ई० में हम सारंगधर को उपस्थित पाते हैं। इनका उल्लेख चन्द के वंशज के रूप में पहले किया जा चुका है। टाड के अनुसार यह रणथंभौर के परम वीर राजा हम्मीरदेव चौहान ( १३०० ई० में उपस्थित ) के दरबारी कवि थे, जो कि चन्द के पूर्वज बीसलदेव के वंशज थे। हम्मीर के हठी शौर्य और अलाउद्दीन खिलजी के हाथों उसकी वीरतापूर्ण मृत्यु ने अनेक कहावतों को जन्म दिया है और भारत की अनेक भाषाओं में इनका गौरवपूर्ण पद्यवद्ध वर्णन किया गया है। इनमें से कोई भी इतना सर्वप्रिय नहीं हुआ, जितना सारंगधर के दो ग्रन्थ हम्मीर रायसी और हम्मीर काव्य हुए। एम० बर्थ ने मुझे जताया है कि यह वही शारंगधर है, जिसने संस्कृत काव्य-संग्रह 'शारंगधर पद्धति' का संकलन किया है, जिसका उल्लेख श्री फ़िट्ज़ एडवर्ड हाल ने वासवदत्ता की भूमिका और प्रोफेसर आफ़ेक्ट ने जेड० डी० एम० जी०, जिल्द २७, पृष्ठ २ पर किया है। मैंने पण्डित मोहनलाल विष्षुलाल पंड्या को इस सम्बन्ध में लिखा था।


१.इस सूचना के लिए मैं श्री ग्राउस का कृतज्ञ हूँ।

२. टाड, भाग २, पृष्ठ ४५२ टि०, ४७२ टि०; कलकत्ता संस्करण, भाग २, पृष्ठ ४९७ टि०, ५१० टि०।