पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ६७ )

उनके उत्तर ने इस सूचना की सत्यता को सुदृढ़ कर दिया है। मैं इन महाशय का उन उद्धरणों के लिए भी कृतज्ञ हूँ, जिनसे सिद्ध होता है कि सारंगधर यी शारंगधर नहीं, बल्कि उनके पितामह रघुनाथ हम्मीर के दीक्षा गुरु थे। सारंगधर पद्धति की रचना सन् १३६३ ई० में हुई थी।

मैंने इस कवि की रचनाओं के कुछ फुटकर अंश ही देखे हैं, अतः मैं यह कहने में असमर्थ हूँ कि अन्य दोनों काव्य ग्रंथ निश्चित रूप से इसी कवि के हैं अथवा नहीं। जयपुर के बाबू ब्रजनाथ वंद्योपाध्याय कृत 'हम्मीर रासा' या 'रणथंभौर के राजा हम्मीर का इतिहास' के अनुवाद ( जर्नल आफ़ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बँगाल, जिल्द ४८, १८७९ ई०, पृ० १८६ ) ने संदेह उत्पन्न कर दिया है। इस अनुवाद की भूमिका के अनुसार मूल-ग्रंथ नीमराना, अलवर के किसी जोधराज की रचना है। यह जोधराज पृथ्वीराज चौहान के वंशज चंद्रभान के दरबारी कवि थे, यह गौड़ ब्राह्मण थे और बिजावर में पैदा हुए थे। रायल एशियाटिक सोसाइटी के पुस्तकालय में टाडसंग्रह के अन्तर्गत, ( ग्रंथांक ३२ ) सारंगधर ( या शारंगधर ) पद्धति की एक प्रति है। मुझे २९९ दुपतिये पत्रों के इस बड़े ग्रंथ को सरसरी तौर से ही देखने का अवसर मिला था। प्रोफ़ेसर पीटर्सन ने इसका एक संस्करण मेंबई से प्रकाशित कराया है। उक्त संग्रह में ग्रंथांक ४२ का नाम 'हम्मीरचरित ' है, पर मैं यह कहने में असमर्थ हूँ कि यह ऊपर वणित ग्रंथों में से ही कोई है अथवा नहीं।

टि०–बीसलदेव चंद के पूर्वज नहीं थे। वीसलदेव के दरबारी कवि चंद के पूर्वज थे। सारंगधर चंद के वंशज थे, इसका कोई प्रमाण सुलभ नहीं। सरोज को छोड़ ऐसा उल्लेख और कहीं देखने में नहीं आया। हम्मीर पर अनेक काव्य-ग्रंथ प्रस्तुत किए गए हैं। जोधराज का हम्मीर रासा, शारंगधर के हम्मीर रासा से भिन्न रचना है। जोधराज के हम्मीर रासा का अनुवाद ब्रजनाथ वंद्योपाध्याय ने किया था। जोधराज ने भी एक हम्मीर रासा दिखा था, इससे यह कदापि नहीं सिद्ध होता कि सारंगधर ने हम्मीर रासा नहीं लिखा था। एक ही विषय और नाम के विभिन्न ग्रंथ, विभन्न समयों में, विभिन्न व्यक्तियों द्वारा बराबर लिखे गए हैं। टाड संग्रह का हम्मीर चरित ( ग्रंथक ४२ ) नाम की विभिन्नता के कारण सारंगधर के अंथ से अभिन्न नहीं प्रतीत होता।


१. अकबर के दरबार में जोध ( सं० ११८ ) नामक एक कवि हुआ है, वह यही कवि हो सकता है।