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अध्याय २
पन्द्रहवीं शती का धार्मिक पुनर्जागरण


१०. रामानन्द स्वामी---१४०० ई० के आसपास उपस्थित।

राग कल्पद्रुम। अब हम चारणकाल को पीछे छोड़ते हैं और प्राचीनता के कुहासे से निकलकर, पन्द्रहवीं शती के प्रारम्भ में, वैष्णव धर्म के उत्थान के साथ साथ, साहित्य के महान पुनरुत्थान के युग में प्रवेश करते हैं। इस सम्बन्ध में जो पहला नाम हमें मिलता है, वह है रामानन्द का ( १४०० ई० के लगभग उपस्थित )। यह लेखक की अपेक्षा धार्मिक सुधारक अधिक थे। ( देखिए विलसन, रेलिजस सेक्टस आफ़ हिंदू, भाग १, पृष्ठ ४७ )। मैंने इनके द्वारा लिखित, या इनकी रचना होने के अभिप्राय से लिखित कुछ पद ( hymns ) एकत्र किए हैं, जो लोगों की जबान पर चढ़कर पूर्व में मिथिला तक पहुँच गए हैं।

टि०--स्वामी रामानन्द प्रयाग के पुण्यसदन और सुशीला देवी नामक कान्यकुब्ज ब्राह्मण की संतान थे और काशी में स्वामी राघवानन्द के शिष्य थे। यह श्री संप्रदाय के वैष्णव थे। संप्रदाय के अनुसार इनका जन्मकाळ सं० १३५६ माघ कृष्ण सप्तमी और मृत्युकाल से० १४६७ वैशाख शुक्ल तृतीया है। डा० श्री कृष्णलाल ने इनकी वय १३५-३६ वर्ष और मृत्युकाल सं० १४९१-९२ स्वीकार किया है।

--रामानन्द की हिंन्दी रचनाएँ, पृष्ठ ३४, ४०, ४१,

११. भवानन्द--१४०० ई० के आसपास उपस्थित।

रामानन्द के शिष्यों में से एक ( विलसन, रेलिजस सेक्ट्स आफ़ हिंदूज़, भाग १, पृष्ठ ५६ )। १४ अध्यायों में लिखित 'अमृत धार’ नामक वेदांत दर्शन के एक हिन्दी भाष्य के प्रसिद्ध लेखक। देखिये मैक० सूचीपत्र, भाग २, पृष्ठ १०८; गार्सां द तासी द्वारा भाग १ पृष्ठ १४० पर उल्लिखित एवं उदाहृत।

टि०---इनका शुद्ध नाम भावानन्द है। नाभादास ने रामानन्द के १२ शिष्यों में इनका नाम दिया है-

अनन्तानन्द, कबीर सुहा, सुरसुरा, पद्मावति, नरहरि।

पीपा, भावानन्द, रैदास, धना, सेन, सुरसुर की धरहरि।३६