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१२. सेन कवि—बांधव वाले। १४०० ई० के आसपास उपस्थित।

हजारा। जाति के नाई और रामानंद जी के शिष्यों में से एक। सिक्ख ग्रंथ में भी इनकी कविताएँ हैं। यह और इनके वंशज कुछ दिनों तक बांधो (रीवाँ) के राजाओं के कौटुंबिक गुरु थे। इनके संबंध में एक जनश्रुति के लिए देखिए विलसन, 'रिलिजस सेक्ट्स आफ़ द हिंदूज' भाग १, पृष्ठ ११८.

टि०—ऊपर उद्धृत रामानंद के शिष्यों की सूची वाले नाभा के छप्पय में सेन का भी नाम है। इनका संबंध बांधवगढ़ के राजा रामचंद्र बघेला (शासनकाल सं० १६११-१६४८ वि०) से कहा जाता है। ऊपर जिस जनश्रुति की ओर संकेत किया गया है, वह यह है। सेन उक्त राजा के यहाँ देह दबाने जाया करते थे। एक दिन भक्त अतिथि आ गए। उनके स्वागत सत्कार में सेवा का समय टल गया और भगवान ने स्वयं सेन का रूप धारणकर ठीक समय पर राजा के पाँव दबाए। जब विलंब से सेन गए, तब राजा ने कहा कि तुम बावले तो नहीं हो गए हो, अभी तो देह दबाकर गए हो, अब फिर आ गए। सेन एवं राजा पर यह भगवत् रहस्य खुलते देर न लगी। सेन के भक्ति-प्रभाव को देखकर राजा उनका शिष्य हो गया।


१३. कबीरदास—बनारस के जुलाहा। १४०० ई० के आसपास उपस्थित।

हजारा, राग कल्पद्रुमे। रामानंद के शिष्यों में यह सर्वाधिक प्रसिद्ध थे। शब्दावली, रमैनी, साखी और सुखनिधान में इनकी प्रमुख रचनाएँ सम्मिलित हैं। ये सर्वत्र प्रख्यात रचनाएँ हैं और अब भी उद्धृत की जाती हैं। परंपरा के अनुसार यह एक अक्षत-योनि ब्राह्मण विधवा के पुत्र थे। यह छोड़ दिए गए थे। एक जुलाहे की स्त्री नीमा अपने पति नूरी के साथ एक बारात में जा रही थी। उसने बनारस के निकट लहरतारा नामक तालाब में एक कमल के ऊपर इन्हें पाया। कहा जाता है कि यह ११४९ ई० से १४४९ ई० तक, लगभग तीन सौ वर्षों तक जीवित रहे। वस्तुतः यह पंद्रहवीं शती के प्रारंभ में उपस्थित थे।१

'खास ग्रंथ' नामक संग्रह में सुरक्षित, कबीर के कहे जाने वाले भारी भरकम ग्रंथों की पूरी सूची, विलसन के रेलिजस सेक्ट्स ऑफ़ द हिन्दुज़' 'भाग १ पृष्ठ ७६ पर सुलभ है। तात्कालिक उपयोग के लिए यहाँ यह उद्धृत कर दी


१. विशेष विवरण के लिए विलसन कृत 'रेलिजस सेक्ट्स आफ़ द हिन्दूज' भाग १, पृष्ठ ७३ देखिए।