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कई संस्कृत ग्रन्थों के रचयिता थे, जिनमें से मुख्य हैं सुप्रसिद्ध पुरुष-परीक्षा, दुर्गा भक्ति तरंगिणी, दान वाक्यावली, विवाद सार और गया पतन; किन्तु इनका प्रमुख गौरव मैथिली बोली में रचित इनके अतुलित पदों में है, जो राधा कृष्ण के प्रेम व्याज से आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध की रूपकात्मक अभिव्यक्ति करते हैं। सुप्रसिद्ध हिन्दू सुधारक चैतन्य सोलहवीं शती के प्रारम्भ में ( जन्म १४८४ ई० ) हुए। उन्होंने इनके पदों को सहज ही स्वीकार कर लिया था और बड़े उत्साह से इन्हें गाते थे। उनके द्वारा ये गीत इन निचले प्रान्तों में घरेलू काव्य बन गए। फलतः अनेक अनुकरण करने वाले हो गए, जिनमें से अनेक ने विद्यापति के ही नाम से लिखा, अतः असल को नकल से अलग करना अत्यन्त कठिन हो गया है, विशेषकर उस दशा में और भी जब कि असल भी समय के फेर से बंगाली महावरों एवं छंदों के अनुकूल बदल गए हैं। विद्यापति बंगाली कवि चण्डीदास और उमापति तथा जयदेव के सम-सामयिक थे तथा इनमें से प्रथम ( चण्डीदास ) के साथ इनकी अच्छी मित्रता भी थी, यह हम जानते हैं। हम देख चुके हैं कि यह १४०० ई० में एक प्रसिद्ध कवि थे। इनके हाथ की लिखी भागवत पुराण की एक पोथी अभी तक उपलब्ध है, जिस पर ल० संवत् ३४९ ( १४५६ ई० ) अंकित है, अतः वे पर्याप्त वृद्धावस्था तक जीवित रहे। इनके जीवन की यही दो निश्चित तिथियाँ हमें ज्ञात हैं। निम्नांकित तिथियाँ अजोध्या प्रसाद के गुलज़ारे बिहार में उल्लिखित विभिन्न राजाओं के सिंहासनारोहण की तिथियों के अनुसार हैं। अजोध्या प्रसाद की तिथियाँ ये हैं---

राजा देव सिंह १३८५ ई० में सिंहासनासीन हुए

शिव सिंह १४४६

दो रानियों ने १४४९ से १४७० तक राज्य किया

नरसिंहदेव १४७०

धीर सिंह १४७१

पुष्पिका के अनुसार पुरुष-परीक्षा देव सिंह के समय में अर्थात् १४४६ ई० के पूर्व लिखी गई; और दुर्गा भक्ति तरंगिणी नरसिंह देव के समय में अर्थात् १४७० ई० में। अतः विद्यापति के जीवन की उपलब्ध तिथियों को हम इस प्रकार रख सकते हैं, इनमें से जो अजोध्या प्रसाद के अनुसार हैं, वे तिरछे अक्षरों में दी गई हैं:--

विसपी गाँव पाया, अतः इस समय के पूर्व ही पूर्ण विद्वान् १४०० ई०

इस तिथि के पहले पुरुष-परीक्षा लिखी १४४६ई०