पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/८५

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हैं कि उनके विग्रह की इस भाव-विभोरता से पूजा करती थीं कि यह सजीव हो जाता था और देवता अपना स्थान छोड़कर ‘ो मीरा' कहते हुए इन्हें आकर्षित कर लेता था । इन शब्दों को सुनकर भावातिरेक में, वह उनकी भुजाओं में ही दिवंगत हो गई। विलसन के अनुसार,१ अपने धार्मिक सिद्धांतों के कारण अपने पति के परिवार वालों द्वारा यह अत्यधिक सताई गई। यह घुमक्कड़ वैष्णों की आश्रयदात्री हो गई और इन्होंने वृन्दावन तथा द्वारिका की तीर्थ यात्रा की । द्वारिका छोड़ने के पहले, इन्होंने अपने प्रिय देवता की आज्ञा लेने । के लिए उनके मंदिर में प्रवेश किया । पूजा के पश्चात् मूर्ति फट गई । मीरा दरार में कूद गई, मृति पूर्ववत बंद हो गई और मीरा सदा के लिए अंतर्धन हो गई । मैंने मिथिला के लोगों से जानी सुनकर इनके कहे जानेवाले कुछ गीतों का संकलन किया है । इस तथ्य से इनकी कविताओं की सर्वप्रियता का कुछ अनुभव सहज ही किया जा सकता है । | दि०---मीरा रतिया राना की पुत्री नहीं थी, यह जोधपुर राज्य के अंत-

  • त मेड़तिया के राजा राठौर रत्न सिंह की पुत्री थीं । मेड़तिया को ही सरोज में

रतिया कहा गया है एवं इसका अनुसरण कर ग्रियर्सन में भी यही रतिया नाम आ गया है । इनके पिता का नाम दूदा नहीं था, जैसा कि टाद में हिंसा गया हैं। इनका जन्म कुद्दकी नामक गाँव में सं० १५५५ के आस पास हुआ था । इनका विवाह सं० १५७३ ई० में चित्तौर ने महारानी भोजराज के साथ हुआ था, न कि कुम्भकर्णसी के साथ । चितौर, उदयपुर एवं मेवाड़ सब एक ही राज्य के सूचक हैं। जिस समय का यह विचरण है, उस समय उदयपुर अस्तित्व में नहीं आया था। इसकी स्थापना अकबर के समय में राना प्रताप सिंह के पिता उदयसिंह ने की थी । सं० १५७५ में मीरा विभवा । हुई । सं० १५९१ में उन्होंने गृह त्याग किया। सं० १६०३ में द्वारिका में इनका देहावसान हुआ । सर्वेक्षण ७०० . २१. कुम्भकरन--चित्तौर ( मेवाड़ ) के राजा, मीराबाई के पति, १४१९ ई० में उपस्थित । राग कल्पद्रुम । यह १४०० ६० के आसपास सिंहासनासीन हुए और अपने पुत्र ऊदा द्वारा १४६९ ई० में मारे गए । टोह के अनुसार ( प्रथम १-२जिस सेक्स आफ हिंन्दु, पृष्ट १३७ २---देखिये टाड, प्रथम भाग पृष्ठ २८६, द्वितीय भाग पृष्ट ७६०; :. कलकता संस्करण माग १, पृष्ठ ३०६, *ग २, पृष्ट ८१८, =

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