पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/९३

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जो कि ९४७ हिजरी ( १५४० ई० ) में सिंहासनासीन हुआ, उस समय शासन करनेवाला सुलतान था । अतः संभवतः ९४७ के स्थान पर ९२७ अशुद्ध पाठ है ।१. पद्मावत की कहानी की रूपरेखा यह है--चित्तौर में रतनसेन नामक एक राजा था, जिसने एक तोते से सिंहल द्वीप ( सीलोन ) के राजा की लड़की पद्मावत अथवा पद्मिनी के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन सुना । उसने योगी रूप में सिंहल की यात्रा की। वहाँ उसने विवाह किया और उसे ले चित्तौर लौटा। इसके पश्चात् राघव ते, जो रतनसेन के दरबार को निकलुवा एक ज्योतिषी था, उस समय के दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी से पद्मिनी के अद्भुत रूप की चर्चा की। फलतः अलाउद्दीन ने उसे प्राप्त करने के लिए चित्तौर-विजय का प्रयत्न किया, जो असफल रहा। वह किसी प्रकार छल से रतन को कैद करने में सफल हुआ और पद्मिनी के आत्म-समर्पण के लिये जमानत रूप में उसे रखे छोड़ा। रतनसेन के बन्दीगृह में होने की परिस्थिति में कुंभलनेर के राजा देवपाल ने उससे अनुचित प्रस्ताव किया, जिसे पद्मिनी ने घृणापूर्वक ठुकरा दिया । अंततः रतन अपने दो वीरों, गोरा और बादल, के शौर्य से बेदागृहे से मुक्त हुआ । जो युद्ध इसके अनंतर हुआ, गारा उसमें खेत रही। जैसे ही रतन पुनः सिंहासनासीन हुआ, उसने अपनी पत्नी के अपमान का बदला लेने के लिए कुंभलनेर पर आक्रमण किया और देवपाल को सुरधाम भेज दिया; किंतु साथ ही वह भी बुरी तरह घायल हुआ और चित्तौर आते आते स्वयं भी दिवंगत हो गया । उसकी दोनों पत्नियाँ पद्मिनी और नागमती सती हो गई। अभी उनकी चिता की राख गर्म ही थी कि अलाउद्दीन की सेना पुनः चित्तौर के किले के फाटक पर पहुँच गई । बादल ने वीरतापूर्वक उसकी रक्षा की, पर फाटक पर युद्ध करता हुआ मारा गया । अंत में चित्तौर जीत लिया गया, लूट लिया गया और इसलाम हो गया । अपने अंतिम छंद में कवि कहता है कि पद्मावत लपक है । चित्तौर से उसका अभिप्राय मनुष्य शरीर से हैं, रतनसेन १-मेरे मित्र, बांकीपुर कालेज के संस्कृत के प्रोफेसर १० छोटूराम तिवारी ने इस महत्वपूर्ण ग्रंथ के शुद्ध पाठं और उसके अनुवादको कार्य-भरि बिब्लिओथेका इण्डिका' के लिये लिया है। ( शोक, जब से ऊपर का अंश लिखा गया, एक विद्वान और विनम्र अध्येतो, जिसने . कभी किसी से कोई कटु बात नहीं की, जिनसे घनिष्टता स्थापित करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है, उन भलेमानसों और शुद्धाचरण लोगों में से एक, सदा के लिये अपने सुदूर निवास को चला गया । इनकी असामयिक मृत्यु से मैंने अपना एक सच्चा मित्र और अदि- यीय अध्यापक खो दिया !) ।