पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/९४

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( ८३ ) आत्मा है, सुआ गुरु है, पद्मिनी बुद्धि है, राघव शैतान है, अलाउद्दीन माया . है, और इसी प्रकार और भी। , पद्मावत की कथा चित्तौर के घेरे के ऐतिहासिक तथ्य पर निर्भर है, जिसको उल्लेख टाड ने किया है ( राजस्थान भाग १, पृष्ठ २६२ और आगे, कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ट २८१ और आगे )। इसका सारांश यह है--चित्तौर का अल्पवयस्क राजा लखनसी १२७५ ई० में सिंहासनासीन हुआ । उसका चाचा भीमसी उसकी नाबालगी में शासन करता या । उसने सीलोन के राजा हम्मीर संख ( सिंह ) चौहान की कन्या पद्मिनी से विवाह किया था । अलाउद्दीन ने उसे प्राप्त करने के लिए चितौर पर घेरा डाल दिया और बहुत दिनों के लम्बे और व्यर्थ घेरे के अनन्तर उसने पद्मिनी के रूप को दर्शन मात्र कर लेने तक अपनी इच्छाओं को सीमित कर लिया और उसकी झलक दर्पण में देख लेने पर ही सहमत हो गया । राजपूत के विश्वास पर निर्भर होकर वह चित्तौर गढ़ में, अल्प सुरक्षा में ही, प्रविष्ट हुआ, और अपनी इच्छा पूर्ण करके लौट आया । विश्वास करने में पिछड़ने को न तैयार हो, राजपूत गढ़ी के द्वार तक बादशाह को पहुँचाने आया । यहाँ अलाउद्दीन के कुछ सिपाही छिपे खड़े थे। उन्होंने भीमसी को बंदी बना लिया अरि उसकी स्वतंत्रता पद्मिनी के आत्म-समर्पण पर निर्भर कर दी । यह. सूचना मिलने पर उसने पति की जमानत के लिए आत्म-समर्पण स्वीकार कर लिया । अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा का पूर्ण प्रबंध कर लेने पर, उसने अपने चाचा गोरा और अपने भतीजा बादल नामके दो सरदारों से, जो उसके वंशं के थे और साथ में सीलोन से आए थे, मन्त्रणा की, और अपने प्राण एवं प्रतिष्ठा को बिना खतरे में डाले हुए राजा की मुक्ति की योजना बनाई । वह अलाउद्दीन के खेमे में बहुत सी पालकियों के जलूम में गई, जिनके होने वाले और जिनमें बैठने वाले अस्त्र शस्त्र से सुसज्जितं दासी और नारी वेशाय पुरुष थे। उनमें से कुछ पद्मिनी और भीमसी को छन्नवेश में लिए हुए लौट आए। शेषं शत्रु के खेमे में ही रह गए, जब तक कि छल नहीं खुल गया । उन्होंने शत्रु सेना का पूर्ण मार्गावरोध किया और स्वामी की वापसी में ढाल बन गए। ऐसा करने में सब एक एक कर काट डाले गए। भीमसी और पद्मिनी चिंत्तौर पहुँच गए। किले को पुनः घेर लेने के प्रयास में असफल हो अलाउद्दीन ने घेरी उठा लिया। इस युद्ध में गौरा मारा गया । वह. १२९० में पुनः चित्तौर को घेरने के लिए लौटा (फिरिश्ता के अनुसार वह १३ वर्ष बाद पुनः आया ) . एक एक करके राजा के:१२ पुत्रों में से ११ मारे गए । तव अपने द्वितीय पुत्र अजयसिंह के बाहर .